सुप्रीम कोर्ट ने 14 साल की दुष्कर्म पीड़िता के करीब 29 हफ्ते का गर्भ गिराने की इजाजत दी

सुप्रीम कोर्ट ने  “पूर्ण न्याय” करने हेतु 22 अप्रैल को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए महाराष्ट्र की 14 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता की लगभग 30  सप्ताह के गर्भ  की चिकित्सीय समाप्ति की अनुमति दे दी।

नाबालिग को गर्भ के बारे में बहुत देर से पता चला।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह राहत दुर्लभ है क्योंकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) एक्ट विवाहित महिलाओं के साथ-साथ विशेष श्रेणियों की महिलाओं, जिनमें बलात्कार पीड़िताएं, दिव्यांग , नाबालिग और अन्य वल्नरेबल महिलाएं शामिल हैं, के मामले में गर्भावस्था को समाप्त करने की ऊपरी सीमा 24 सप्ताह तय करती है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) MTP अधिनियम में वर्णित 24 सप्ताह की अवधि से परे, 20 मार्च, 2024 को दर्ज की गई थी।

अपराध के संबंध में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

बता दें कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम एक डॉक्टर की सलाह पर 20 सप्ताह तक की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देता है।

कुछ मामलों के तहत गर्भावस्था 20-24 सप्ताह के होने पर गर्भपात कराने का अधिकार दो पंजीकृत चिकित्सा चिकित्सकों द्वारा अपवाद के रूप में दिया किया जाता है।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के तहत, 24 सप्ताह से अधिक गर्भ की समाप्ति  आमतौर पर प्रतिबंधित हैं, जब तक कि गर्भावस्था महिला के जीवन के लिए गंभीर खतरा न हो या भ्रूण में महत्वपूर्ण विकार शामिल न हों।
 

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