भारतीय न्याय संहिता, 2023; भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023: प्रमुख प्रावधान

केन्द्रीय गृह श्री अमित शाह ने 11 अगस्त 2023 को भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita Bill, 2023), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita Bill, 2023) और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 (Bharatiya Sakhshya Bill, 2023) लोक सभा में चर्चा के लिए रखे।

इंडियन पीनल कोड, 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता, 2023 स्थापित होगा, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1898 की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और इंडियन एवीडेंस एक्ट, 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 स्थापित होगा।

भारतीय न्याय संहिता विधेयक: प्रमुख प्रावधान

  • यह भारतीय दंड संहिता, 1860 का स्थान लेगा।
  • इसमें पहले की 511 धाराओं की जगह 356 धाराएं होंगी, 175 धाराएं संशोधित की गई हैं, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराएं निरस्त की गई हैं।
  • इसमें IPC की धारा 377 (या समकक्ष धारा) शामिल नहीं है, जिसे 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने हटा दिया था। यह आत्महत्या के प्रयास (धारा 309) के लिए सजा को हटा दिया गया है।
  • मसौदे में पहली बार आतंकवादी गतिविधियों और संगठित अपराध को अपराधों की श्रेणी में जोड़ा गया है। पहली बार ऐसा प्रावधान किया गया कि शादी, रोज़ग़ार और पदोन्नति के झूठे वादे और गलत पहचान के आधार पर यौन संबंध बनाने को अपराध की श्रेणी में लाया गया है।
  • प्रस्तावित कानून में देशद्रोह के अपराध को निरस्त कर देगा, जिसे IPC की धारा 124ए के तहत अपराध माना गया है। नया विधेयक धारा 150 के साथ राजद्रोह प्रावधान को प्रतिस्थापित करता है, जो “भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों” से संबंधित है। ऐसे कृत्यों के लिए 7 साल की जेल या आजीवन कारावास और जुर्माना होगा।
  • मॉब लिंचिग के लिए 7 साल, आजीवन कारावास और मृत्यु दंड के तीनों प्रावधान रखे गए हैं। मोबाइल फोन या महिलाओं की चेन की स्नेचिंग के लिए पहले कोई प्रावधान नहीं था, लेकिन अब इसके लिए भी प्रावधान रखा गया है।
  • अन्य संभावित सज़ाओं में नाबालिग से बलात्कार के लिए मौत की सज़ा और सामूहिक बलात्कार के लिए 20 साल की जेल से लेकर आजीवन कारावास तक शामिल हैगैंग रेप के सभी मामलों में 20 साल की सज़ा या आजीवन कारावास का प्रावधान किया है, जो आज अमल में नहीं है। 18 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के मामले में मृत्यु दंड का भी प्रावधान रखा गया है।
  • प्रावधानों में चुनाव के दौरान मतदाताओं को रिश्वत देने के लिए एक साल की कैद शामिल है।
  • इसमें छोटे-मोटे अपराधों के लिए सजा के रूप में सामुदायिक सेवा का आह्वान किया गया है, जो पहली बार दंड संहिता का हिस्सा होगा।
  • छोटे मामलों में समरी ट्रायल का दायरा भी बढ़ा दिया गया है, अब 3 साल तक की सज़ा वाले अपराध समरी ट्रायल में शामिल हो जाएंगे, इस अकेले प्रावधान से ही सेशन्स कोर्ट्स में 40 प्रतिशत से अधिक केस समाप्त हो जाएंगे।
  • प्रस्तावित संहिता में धारा 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी) नहीं है। धोखाधड़ी का अपराध अब धारा 316 के अंतर्गत वर्णित है।
  • आईपीसी की धारा 302 में हत्या के लिए सज़ा का प्रावधान है। न्याय संहिता में धारा 302 “स्नैचिंग” के अपराध का वर्णन करती है।
  • प्रस्तावित संहिता में, हत्या को धारा 99 के अंतर्गत शामिल किया गया है, जो गैर इरादतन हत्या और हत्या के बीच अंतर की पहचान करती है।
  • आईपीसी की धारा 375 बलात्कार के अपराध को परिभाषित करती है। लेकिन अब प्रस्तावित संहिता की धारा 63 के तहत बलात्कार के अपराध को परिभाषित किया गया है। प्रस्तावित संहिता में जबरन यौन संबंध की सात शर्तों को बरकरार रखा गया है, जो आईपीसी के तहत बलात्कार का अपराध है।
  • बच्चों के साथ अपराध करने वाले व्यक्ति के लिए सज़ा को 7 साल से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया है। अनेक अपराधों में जुर्माने की राशि को भी बढ़ाने का प्रावधान किया गया है। हिरासत में से भाग जाने वाले अपराधियों के लिए भी 10 साल की सज़ा का प्रावधान है।
  • सज़ा माफी को राजनीतिक फायदे के लिए उपयोग करने के कई मामले देखे जाते थे, अब मृत्यु दंड को आजीवन कारावास, आजीवन कारावास को कम से कम 7 साल की सज़ा और 7 साल के कारावास को कम से कम 3 साल तक की सज़ा में ही बदला जा सकेगा और किसी भी गुनहगार को छोड़ा नहीं जाएगा।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023: प्रमुख प्रावधान

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, जो CrPC को रिप्लेस करेगी, में अब 533 धाराएं रहेंगी, 160 धाराओं को बदल दिया गया है , 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराओं को निरस्त किया गया है।
  • ज़ीरो FIR संबंधी प्रावधान जोड़ा गया है। अपराध कहीं भी हुआ हो उसे अपने थाना क्षेत्र के बाहर भी रजिस्टर किया जा सकेगा। अपराध रजिस्टर होने के 15 दिनों के अंदर संबंधित थाने को भेजना होगा।
  • पहली बार e-FIR का प्रावधान जोड़ा गया है। हर ज़िले और पुलिस थाने में एक ऐसा पुलिस अधिकारी नामित किया जाएगा जो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार को उसकी गिरफ्तारी के बारे में ऑनलाइन और व्यक्तिगत रूप से सूचना देगा।
  • यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान कंपल्सरी कर दिया गया है और यौन उत्पीड़न के मामले में बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अब कंपल्सरी कर दी गई है।
  • पुलिस को 90 दिनों में शिकायत का स्टेटस और उसके बाद हर 15 दिनों में फरियादी को स्टेटस देना कंपल्सरी होगा
  • पीड़ित को सुने बिना कोई भी सरकार 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास का केस वापस नहीं ले सकेगी, इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होगी।
  • आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समयसीमा तय कर दी गई है और परिस्थिति देखकर अदालत आगे 90 दिनों की परमीशन और दे सकेंगी
  • इस प्रकार 180 दिनों के अंदर जांच समाप्त कर ट्रायल के लिए भेज देना होगा। कोर्ट अब आरोपित व्यक्ति को आरोप तय करने का नोटिस 60 दिनों में देने के लिए बाध्य होंगे।
  • बहस पूरी होने के 30 दिनों के अंदर न्यायाधीश को फैसला देना होगा, इससे सालों तक निर्णय पेंडिंग नहीं रहेगा, और फैसला 7 दिनों के अंदर ऑनलाइन उपलब्ध कराना होगा।
  • सिविल सर्वेंट या पुलिस अधिकारी के विरूद्ध ट्रायल के लिए सरकार को 120 दिनों के अंदर अनुमति पर फैसला करना होगा वरना इसे डीम्ड परमीशन माना जाएगा और ट्रायल शुरू कर दिया जाएगा।

भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023: प्रमुख प्रावधान

  • भारतीय साक्ष्य विधेयक, जो Evidence Act को रिप्लेस करेगा, इसमें पहले की 167 के स्थान पर अब 170 धाराएं होंगी, 23 धाराओं में बदलाव किया गया है, एक नई धारा जोड़ी गई है और 5 धाराएं निरस्त की गई हैं।
  • दस्तावेज़ों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल और मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है।
  • अब पूरा ट्रायल, क्रॉस क्वेश्चनिंग (cross questioning) सहित, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से होगा। शिकायतकर्ता और गवाहों का परीक्षण, जांच-पड़ताल और मुक़दमे में साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग और उच्च न्यायालय के मुक़दमे और पूरी अपीलीय कार्यवाही भी अब डिजिटली संभव होगी।
  • सर्च और ज़ब्ती के वक़्त वीडियोग्राफी को कंपल्सरी कर दिया गया है जो केस का हिस्सा होगी और इससे निर्दोष नागरिकों को फंसाया नहीं जा सकेगा। पुलिस द्वारा ऐसी रिकॉर्डिंग के बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी।
  • 7 वर्ष या इससे अधिक सज़ा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम की विज़िट को कंपल्सरी किया जा रहा है।

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