यूनाइटेड किंगडम की संसद ने रवांडा डिपोर्टेशन बिल पास किया

यूनाइटेड किंगडम (यूके) की संसद ने 23 अप्रैल को रवांडा डिपोर्टेशन बिल को पास कर दिया है। इस बिल का उद्देश्य ब्रिटेन में अवैध रूप से आने वाले शर्णाथियों को रवांडा भेजना है।

बता दें कि इस बिल को 2022 में तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन रवांडा के साथ हुए एक समझौता के बाद लाए थे। इस समझौते के मुताबिक, ब्रिटेन की सरकार रवांडा को अवैध शरणार्थियों को रखने के लिए 3 हजार करोड़ रुपए देगी।  नई नीति यूके के आव्रजन अधिकारियों को जनवरी 2022 के बाद “अवैध रूप से” यूके में प्रवेश किये/करने वाले किसी भी शरण चाहने वाले को रवांडा भेजने की शक्ति देगी। ऐसे व्यक्तियों को यू.के. में शरण के लिए आवेदन करने से भी प्रतिबंधित किया जा सकता है।  यह बिना पूर्व अनुमति के यूके आने वाले किसी भी व्यक्ति पर लागू होगा।  

हलांकि यूरोप के मानवाधिकार संगठनों ने ऋषि सुनक के रवांडा बिल की आलोचना की है। उनके मुताबिक ये बिल ‘राइट टू लिव’ यानी रहने के अधिकार के खिलाफ है। इन संगठनों ने ब्रिटिश सरकार पर कोर्ट का आदेश का पालन न करने के आरोप लगाए हैं।  

1951 शरणार्थी कन्वेंशन और इसका 1967 प्रोटोकॉल शरणार्थियों के अधिकारों व रक्षा से संबंधित हैं।

इसमें ‘शरणार्थी’ शब्द को परिभाषित किया गया है और ये उनके अधिकारों और उनकी सुरक्षा के लिए  अंतरराष्ट्रीय मानकों को रेखांकित करते हैं।

1951 का कन्वेंशन शरणार्थी की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त परिभाषा प्रदान करता है और एक शरणार्थी को प्राप्त होने वाली कानूनी सुरक्षा, अधिकारों और सहायता की रूपरेखा देता है।

UNHCR इन दस्तावेजों के ‘गार्डियन’ के रूप में कार्य करता है।

1951 के कन्वेंशन का मूल सिद्धांत नॉन-रिफॉलमेंट (non-refoulement) है, जो इस बात पर जोर देता है कि किसी शरणार्थी को ऐसे देश में वापस नहीं भेजा जाना चाहिए जहां उन्हें अपने जीवन या स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है।

यह डॉक्यूमेंट शरणार्थियों के साथ व्यवहार के लिए बुनियादी न्यूनतम मानकों की रूपरेखा तैयार करता है, जिसमें विस्थापित होने पर आवास, काम और शिक्षा का अधिकार भी शामिल है ताकि वे एक सम्मानजनक और स्वतंत्र जीवन जी सकें।

यह मेजबान देशों के प्रति शरणार्थी के दायित्वों को भी परिभाषित करता है और युद्ध अपराधियों जैसे कुछ श्रेणियों के लोगों को शरणार्थी  के लिए अयोग्य घोषित करता है।

इसके अलावा, यह उन देशों के कानूनी दायित्वों का विवरण देता है जो कन्वेंशन या प्रोटोकॉल या दोनों  के पक्षकार हैं।

भारत 1951 के शरणार्थी कन्वेंशन या उसके 1967 प्रोटोकॉल का पक्षकार नहीं है और न ही उसके पास राष्ट्रीय शरणार्थी सुरक्षा फ्रेमवर्क है।

रवांडा पूर्व-मध्य अफ्रीका में भूमध्यरेखा के दक्षिण में स्थित लैंडलॉक्ड देश है।

रवांडा को अक्सर ले पेज़ डेस मिल कोलिन्स (फ़्रेंच: “हज़ार पहाड़ियों की भूमि”) कहा जाता है।

राजधानी किगाली देश के मध्य में रुगनवा नदी पर स्थित है।

बहुसंख्यक हुतु और अल्पसंख्यक तुत्सी गुटों के बीच जातीय संघर्ष के कारण यह देश हमेशा चर्चा में रहता है।

रवांडा उत्तर में युगांडा, पूर्व में तंजानिया, दक्षिण में बुरुंडी और पश्चिम में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (किंशासा) और किवु झील से घिरा है।

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