लोकपाल ने बिना किसी कार्रवाई के लोक सेवकों के खिलाफ 68% भ्रष्टाचार की शिकायतों का निपटारा किया: संसदीय समिति
लोकपाल कार्यालय द्वारा कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) पर एक संसदीय समिति को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत के लोकपाल के पास आने वाले सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की लगभग 68% शिकायतें पिछले चार वर्षों में बिना किसी कार्रवाई के निपटा दी गईं।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
लोकपाल के कार्यालय द्वारा एक संसदीय पैनल को दी गई जानकारी के अनुसार, केवल तीन शिकायतों की पूरी तरह से जांच की गई।
इसने आज तक भ्रष्टाचार के आरोपी एक भी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाया है।
2019-20 के बाद से, इस भ्रष्टाचार-रोधी संस्था को 8,703 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 5,981 शिकायतों का निस्तारण किया गया।
सही प्रारूप में नहीं होने के कारण 6,775 शिकायतों को खारिज कर दिया गया। कार्यालय ने बताया कि केवल तीन शिकायतों की पूरी तरह से जांच की गई और 36 शिकायतें प्रारंभिक चरण में थीं।
2022-23 में, 2,760 शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें से केवल 242 निर्धारित प्रारूप में थीं।
5 जनवरी 2023 को, भारत के लोकपाल ने एक आदेश जारी किया कि अब से, भारत के लोकपाल के कार्यालय द्वारा प्राप्त शिकायतें जो निर्धारित प्रपत्र में नहीं थीं, किसी भी स्तर पर विचार नहीं की जाएंगी।
संसदीय समिति लोकपाल द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से अनुमान लगाती है कि बड़ी संख्या में शिकायतों का निस्तारण इस आधार पर किया जा रहा है कि शिकायत निर्धारित प्रारूप में नहीं है।
लोकपाल ने समिति को कहा है कि उसने आज तक भ्रष्टाचार के आरोपी एक भी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया है।
इसने कहा कि लोकपाल की स्थापना स्वच्छ और उत्तरदायी शासन को बढ़ावा देने के प्रयास में की गई थी और इसलिए, लोकपाल को एक अवरोधक के बजाय एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करना चाहिए।
समिति ने लोकपाल से सिफारिश की है कि वास्तविक शिकायतों को केवल तकनीकी आधार पर खारिज न करें कि शिकायत निर्धारित प्रारूप में नहीं है।
लोकपाल के बारे में
भारत का लोकपाल देश का पहला भ्रष्टाचार-रोधी निकाय है। इसे चार साल पहले प्रधान मंत्री सहित सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए स्थापित किया गया था।
लोकपाल, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 3 के तहत स्थापित एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है।
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 4(1) के तहत चयन समिति की सिफारिश पर, भारत के राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत वारंट द्वारा अध्यक्ष और इसके आठ सदस्यों (चार न्यायिक सदस्यों सहित) की नियुक्ति करते/करती हैं।
हालांकि अधिनियम 2013 में पारित किया गया था, लेकिन देश के पहले लोकपाल, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष को 19 मार्च, 2019 को आठ अन्य सदस्यों के साथ नियुक्त किया गया था।
न्यायमूर्ति घोष मई 2022 में 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद सेवानिवृत हो गए और तब से, प्रदीप कुमार मोहंती लोकपाल के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे हैं।
वर्तमान में डाक, ई-मेल या हाथ से भेजी गई शिकायतों पर भारत के लोकपाल द्वारा विचार किया जाता है।
उक्त अधिनियम की धारा 48 के अनुसार, लोकपाल को प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को उसके द्वारा किए गए कार्यों की एक रिपोर्ट पेश करनी होती है, जिसे संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखा जाता है।