Asian Premium: सऊदी अरब ने कच्चे तेल पर एशियाई प्रीमियम में कटौती की

दुनिया के दूसरे सबसे बड़े तेल उत्पादक देश सऊदी अरब ने भारत को निर्यात किये जाने वाले कच्चे तेल पर लगने वाले एशियाई प्रीमियम (Asian premium) में कटौती कर दी है।

गौरतलब है कि यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का बड़ा हिस्सा कम कीमत पर रूस से आयात करना आरंभ कर दिया था। इसी के बाद यह कदम उठाया गया है। कई अन्य देशों ने तो एशियाई प्रीमियम पूरी तरह से बंद कर दिया है।

एशियाई प्रीमियम (Asian premium) के बारे में

एशियाई प्रीमियम पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) द्वारा एशियाई देशों से कच्चे तेल के वास्तविक बिक्री मूल्य के अतिरिक्त वसूली जा रही राशि है। अमेरिका और यूरोप के देशों से यह नहीं वसूला जाता है।

एशियाई प्रीमियम की उत्पत्ति 1980 के दशक के उत्तरार्ध में हुई जब सऊदी अरब ने अपने तेल निर्यात के लिए एक मार्कर आधारित मूल्य प्रणाली को अपनाया – अमेरिका के लिए वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट ( West Texas Intermediate), यूरोप के लिए ब्रेंट (Brent) और दुबई/ओमान के लिए एशिया। एशियाई मार्कर अमेरिकी और यूरोपीय मार्करों की तुलना में महंगा था, और बाजार के उतार-चढ़ाव को पूरी तरह से रिफ्लेक्ट नहीं करता था।

इसका कारण एशिया में पर्याप्त उत्पादन केंद्रों (खाड़ी क्षेत्र के अलावा) और तेल डेरिवेटिव बाजार की कमी थी। इसके अलावा एशियाई देश, जो तेल आयात पर बहुत अधिक निर्भर रहे हैं जिसकी वजह से वे प्राइस टेकर बनकर रह गए यानी तेल की कीमत में सौदेबाजी करने की स्थिति में नहीं थे।

भारत ने इस प्रीमियम को खत्म करने के लिए तेल उत्पादकों पर बार-बार दबाव डालता रहा है और इसके बदले ‘एशियाई डिस्काउंट’ की भी मांग की।

सऊदी अरब ने अब प्रीमियम को पिछले वर्ष के लगभग 10 डॉलर से घटाकर 3.5 डॉलर प्रति बैरल कर दिया है।

ऊदी OSP (तेल बिक्री मूल्य) पर प्रीमियम लगा रहा है। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) शुल्क नहीं ले रहा है।

लेकिन समय बदल गया है। हालांकि कई एशियाई देश अभी भी तेल आयात पर बहुत अधिक निर्भर हैं, अब उनके पास कई अधिक स्रोत उपलब्ध हैं। शीर्ष एशियाई खरीदार चीन और भारत, जो वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दूसरे और तीसरे सबसे बड़े आयातक हैं, ने यूक्रेन में युद्ध के बाद रूस द्वारा भारी छूट की पेशकश के बाद रूस से तेल आयात को बढ़ावा दिया है।

शेल बूम के कारण अमेरिका ने तेल का निर्यात शुरू कर दिया है। वैश्विक तेल मांग-आपूर्ति में व्यापक परिवर्तन लाने वाले इस गेम-चेंजर ने 2014 से 2017 तक मूल्य में गिरावट का कारण बना और शक्ति संतुलन को पारंपरिक तेल उत्पादकों से दूर कर दिया है।

फिर, इलेक्ट्रिक वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा का तेजी से विकास हो रहा है, जिसे भारत अपने तेल आयात को कम करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।

चीन और भारत जो आज दुनिया के सबसे बड़े तेल आयातकों में से हैं अब सौदेबाजी के लिए दबाव डाल सकते हैं।

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