Explained: ‘टू-फिंगर’ टेस्ट-क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

सुप्रीम कोर्ट ने 31 अक्टूबर को निर्णय दिया कि बलात्कार या यौन उत्पीड़न से बचे लोगों पर ‘टू-फिंगर’ या ‘थ्री-फिंगर’ वैजिनल टेस्ट (two-finger’ or ‘three-finger’ vaginal test) करने वाला कोई भी व्यक्ति कदाचार का दोषी पाया जाएगा।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

  • न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़िताओं पर “प्रतिगामी” परीक्षण का उपयोग करने के पीछे एकमात्र कारण यह देखना है कि महिला या लड़की संभोग की ” हैबिचूएटेड” थी या नहीं। जज ने कहा कि इस तरह की “चिंता” इस तथ्य के लिए अप्रासंगिक है कि उसके साथ बलात्कार किया गया था या नहीं
  • पीठ ने कहा कि क्या एक महिला “सेक्सुअल इंटरकोर्स के प्रति हैबिचूएटेड” है, यह निर्धारित करना तब अप्रासंगिक हो जाता है जब किसी विशेष मामले में आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के घटक मौजूद हों।
  • एक महिला जिसका यौन उत्पीड़न किया गया है, उसके स्वास्थ्य और चिकित्सीय जरूरतों का पता लगाने, साक्ष्य एकत्र करने आदि के लिए उसे चिकित्सा परीक्षण से गुजरना पड़ता है। एक चिकित्सक द्वारा किए जाने वाले टू-फिंगर टेस्ट में उसकी वेजिना की जांच की जाती है ताकि यह जांचा जा सके कि वह सेक्सुअल इंटरकोर्स के प्रति हैबिचूएटेड या नहीं।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह प्रैक्टिस अवैज्ञानिक है और कोई निश्चित जानकारी प्रदान नहीं करता है। इसके अलावा, ऐसी ‘सूचना’ का बलात्कार के आरोप से कोई लेना-देना नहीं है। अदालत ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 53A में 2013 के संशोधन की ओर इशारा किया। अदालत ने कहा, “…पीड़ित के चरित्र या किसी भी व्यक्ति के साथ उसके पिछले सेक्सुअल अनुभव का सबूत यौन अपराधों के अभियोजन में कंसेंट या कंसेंट की क्वालिटी के लिए प्रासंगिक नहीं होगा।”
  • खंडपीठ, जिसमें जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल थीं, ने नवंबर 2004 में झारखंड में एक नाबालिग लड़की के बलात्कार और हत्या के लिए एक व्यक्ति की दोषसिद्धि और सजा को बहाल करने के अपने आदेश में ये बातें कहीं। पीड़िता ने जब उसके यौन उत्पीड़न के प्रयास को विफल करने की कोशिश की उसे आग लगा दी गई और बाद में, अस्पताल में, उसका ‘टू-फिंगर टेस्ट’ किया गया।

टू-फिंगर टेस्ट पर कानून और निर्देश

  • यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने टू-फिंगर टेस्ट को लेकर नाराजगी जताई है। मई 2013 में, शीर्ष अदालत ने माना था कि टू-फिंगर टेस्ट एक महिला के “निजता के अधिकार” (right to privacy) का उल्लंघन करता है और सरकार को निर्देश दिया था की सेक्सुअल असॉल्ट की पुष्टि के लिए बेहतर चिकित्सा प्रक्रिया उपलब्ध कराये।
  • बता दें कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय 1966 (International Covenant on Economic, Social, and Cultural Rights 1966) और अपराध और शक्ति के दुरुपयोग के पीड़ितों के लिए न्याय के बुनियादी सिद्धांतों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा 1985 (UN Declaration of Basic Principles of Justice for Victims of Crime and Abuse of Power 1985) का हवाला देते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा था कि बलात्कार पीड़िता उन कानूनी सहारा के हकदार हैं जो उसके लिए फिर से सदमा का कारण नहीं बने या उसकी शारीरिक या मानसिक अखंडता और गरिमा का उल्लंघन करते हैं।
  • यौन उत्पीड़न के शिकार लोगों की जांच पर केंद्र के दिशानिर्देश भी टू-फिंगर टेस्ट मना करते हैं, लेकिन यह प्रथा जारी है। वर्ष 2014 में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ‘गाइडलाइन्स एंड प्रोटोकॉल्स मेडिको-लीगल केयर फॉर सर्वाइवर्स / विक्टिम ऑफ़ सेक्सुअल वायलेंस‘ शीर्षक से एक दस्तावेज जारी किया। दिशानिर्देशों में कहा गया है कि किसी भी मेडिकल जांच के लिए बलात्कार पीड़िता (या उसके अभिभावक, यदि वह नाबालिग/मानसिक विकार का शिकार है) की सहमति आवश्यक है। सहमति न देने पर भी पीड़िता को इलाज से वंचित नहीं किया जा सकता है।
  • यौन उत्पीड़न पीड़ितों से निपटने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा जारी एक पुस्तिका कहती है, “कौमार्य (या ‘टू-फिंगर’) टेस्ट के लिए कोई जगह नहीं है; इसकी कोई वैज्ञानिक वैधता नहीं है।”

क्या है टू-फिंगर टेस्ट?

  • टू-फिंगर टेस्ट को पीवी (Per Vaginal) या कौमार्य परीक्षण भी कहा जाता है, यह आमतौर पर एक महिला की योनि की मांसपेशियों की शिथिलता की जांच करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला अभ्यास है, यह जानने के लिए कि वह यौन रूप से सक्रिय है या नहीं।
  • इसके द्वारा एक विशेषज्ञ जो बलात्कार पीड़िता की वेजिना में दो अंगुलियां डालता है ताकि उसकी मांसपेशियों की शिथिलता की जांच की जा सके ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि महिला के साथ जबरन इंटरकोर्स किया गया है या नहीं।
  • माना जाता है कि इस टेस्ट का उपयोग यह जांचने के लिए भी किया जाता है कि महिला कौमार्य है या नहीं
  • हाइमन एक पतली श्लेष्मा ऊतक है जो एक्सटर्नल वैजिनल ओपनिंग को घेरता है और इससे जुड़ी बहुत सारी भ्रांतियां हैं। एक भ्रान्ति यह है कि एक अक्षुण्ण हाइमन एक महिला के कौमार्य का प्रमाण है। हालांकि, किसी महिला के कौमार्य के बारे में निष्कर्ष निकालने के लिए या उसने संभोग किया है या नहीं, इसके बारे में निष्कर्ष निकालने के लिए हाइमन की उपस्थिति का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

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