जोशीमठ भू-धंसाव: कई कारण हैं जिम्मेदार

उत्तराखंड के पवित्र शहर जोशीमठ (Joshimath) के निवासी शहर की इमारतों और सड़कों में दरारें देखकर चिंतित हो गए हैं। अब इसे “धीरे-धीरे डूबता हुआ शहर” (gradually sinking) बताया जा रहा है। जोशीमठ में 561 घरों में दरारें पैदा करने वाली भू-धंसाव (earth subsidence) के कारण, उत्तराखंड सरकार ने भयभीत निवासियों के विरोध-प्रदर्शन के बाद 5 जनवरी को क्षेत्र में विकास कार्य पर रोक लगा दी।

जोशीमठ में भू-धंसाव के लिए कौन से कारण जिम्मेदार हैं?

अनियोजित निर्माण

  • विशेषज्ञ पिछले दस वर्षों से अधिक समय से इस क्षेत्र में भू-धंसाव की आशंका जताते रहे हैं। इन आशंकाओं को देखते हुए शहर का जमीन में धंसना चौंकाने वाला नहीं है क्योंकि कोई सुधारात्मक कार्रवाई नहीं की गई थी। विडंबना यह है कि पिछले दस वर्षों में जोशीमठ शहर और उसके आसपास कई नई बहु-मंजिला संरचनाएं आ खड़ी हुई हैं।
  • धंसाव के कारण हाल ही में इनमें से एक इमारत झुक गई।
  • इस क्षेत्र के भूगर्भीय खतरों से अच्छी तरह वाकिफ होने के बावजूद, जोशीमठ और तपोवन के पास विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना सहित कई अन्य जलविद्युत योजनाओं को मंजूरी दी गई है।
  • अगस्त 2022 से उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, अनियोजित निर्माण के परिणामस्वरूप जोशीमठ की समस्याएं और भी बदतर हो गई हैं, जिसमें यहां की मिट्टी की वहां की क्षमता को ध्यान में नहीं रखा गया है। भूस्खलन आशंकित क्षेत्र में रिटेनिंग वॉल बनाकर कई अतिरिक्त इमारतों को विकसित किया जा रहा है। नतीजतन अब कमजोर ढलान पर दबाव बढ़ गया है।
  • सीमा सड़क संगठन हेलंग बाईपास के निर्माण के लिए बड़ी मशीनरी लगा रहा है, जिससे बद्रीनाथ मंदिर की यात्रा लगभग 30 किलोमीटर कम हो जाएगी।

नदी धाराओं का प्रकोप

  • विशेषज्ञों के अनुसार, टेक्टोनिक गतिविधि के तहत विकास अधिक भूस्खलन का कारण बन सकता है। मिश्रा आयोग ने अपनी 1976 की रिपोर्ट में जोशीमठ के आसपास के क्षेत्र में बड़ी इमारत के खिलाफ चेतावनी दी थी।
  • मिश्रा आयोग (1976) की एक रिपोर्ट ने जोशीमठ-जो भूस्खलन की चपेट में आने वाले क्षेत्र में स्थित है, में भू-धंसाव का पहला मामला दर्ज किया था। यह शहर एक पहाड़ी के मध्य ढलान पर स्थित है जो पश्चिम में कर्मनासा और पूर्व में ढकनाला धाराओं से और दक्षिण में धौलीगंगा और उत्तर अलकनंदा नदियों से घिरा है।
  • ढकनाला, कर्मनासा, पातालगंगा, बेलाकुची और गरुरगंगा ऐसी कुछ धाराएँ हैं, जिनकी उत्पति मध्य हिमालय क्षेत्र में कुंवरी दर्रे (Kunwari Pass) के पास से होती है। ढकनाला धौलीगंगा की एक सहायक नदी है जबकि अन्य अलकनंदा में मिल जाती हैं।
  • अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन द्वारा इनके अवरोध की वजह से ये धाराएँ उस क्षेत्र में विनाश लाने के लिए जानी जाती हैं। सबसे हालिया उपग्रह डेटा से पता चलता है कि इन पर्वतीय नदी धाराओं ने अपने मार्ग को बदल दिया है और अपने चैनलों का और विस्तार कर लिया है। इस तरह पहले से ही कमजोर बेल्ट की ढलान ने खतरों को और बढ़ा दिया है। अधिक वर्षा के बाद यह स्थिति देखी जा रही है।

विवर्तनिक फॉल्ट लाइन

  • विवर्तनिक गतिविधि के कारण भी जोशीमठ में भू-धंसाव का खतरा बना रहता है क्योंकि यह एक फॉल्ट लाइन (भ्रंश रेखा) पर स्थित है और दो अन्य फॉल्ट लाइन इसके करीब है। फॉल्ट, चट्टान के दो ब्लॉकों के बीच फ्रैक्चर या फ्रैक्चर का क्षेत्र है।
  • वैकृत थ्रस्ट (Vaikrita Thrust) नामक एक भूगर्भीय फॉल्ट लाइन जोशीमठ को लगभग छूती है। इसके अतिरिक्त, मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) और पांडुकेश्वर थ्रस्ट (PT) नामक दो प्रमुख भूवैज्ञानिक फॉल्ट, अपेक्षाकृत शहर के पास हैं।
  • जोशीमठ गांव को मेन सेंट्रल थ्रस्ट पर किसी भी विवर्तनिक गतिविधि के प्रभाव क्षेत्र के भीतर रखा गया है क्योंकि यह जोशीमठ शहर के दक्षिण में एक छोटे से शहर हेलंग के नीचे से गुजरता है, और गढ़वाल समूह की चट्टानों के साथ जुड़ा हुआ है।

मानवजनित गतिविधियां

  • मानवजनित गतिविधियों ने प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को बाधित किया है और जल प्रवाह को वैकल्पिक जल निकासी मार्गों की तलाश करने के लिए मजबूर किया है।
  • इसके अलावा, जोशीमठ शहर में सीवेज या अपशिष्ट जल निपटान प्रणाली नहीं है। रिसाव अत्यधिक बोझ वाली मृदा की सहन शक्ति को कमजोर कर देता है।

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