सूचना का अधिकार: तमिलनाडु ने केवल 14% सूचना साझा किए

सतर्क नागरिक संगठन द्वारा 2021-22 के लिए भारत में सूचना आयोगों (ICs) के प्रदर्शन पर जारी एक रिपोर्ट कार्ड के अनुसार मांगी गई जानकारी साझा करने में तमिलनाडु का राज्य सूचना आयोग का प्रदर्शन सबसे ख़राब रहा है और इसने सूचना का अधिकार अधिनियम (Right To Information Act) के तहत मांगी गई जानकारी का केवल 14% साझा किये है।

इसी तरह मांगी गई जानकारी का 23% साझा करने वाला महाराष्ट्र दूसरा सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य था।

द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु का राज्य सूचना आयोग सबसे खराब प्रदर्शन किया क्योंकि इसने मांगी गई अधिकांश सूचनाओं को देने से मना कर दिया था, जिसमें सूचना आयोगों द्वारा निपटाए गए अपीलों और शिकायतों की संख्या, लगाए गए दंड का विवरण और दिए गए मुआवजे का विवरण शामिल है। अधिकांश जवाबों में कहा गया है कि सूचना केवल ‘राज्य विधान सभा से मंजूरी प्राप्त करने के बाद’ प्रदान किया जा सकता है, हालांकि RTI अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है।

सतर्क नागरिक संगठन के मुताबिक RTI आवेदनों के जवाब में केवल 10 सूचना आयोग ने पूरी जानकारी प्रदान की इनमें आंध्र प्रदेश, हरियाणा और झारखंड और पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम, नागालैंड और त्रिपुरा शामिल थे।

संगठन ने कहा कि उसने सूचना आयोगों के कामकाज के बारे में जानकारी तक पहुंचने के लिए, 28 राज्य सूचना आयोगों (SICs) और केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के पास RTI आवेदन दायर किए। कुल 145 RTI आवेदन दायर किए गए थे, जिनमें सभी 29 सूचना आयोगों से समान जानकारी मांगी गई थी। सूचना को बनाए रखने और डिस्क्लोज करने के मामले में प्रत्येक सूचना आयोगों ने एक पब्लिक अथॉरिटी के रूप में कैसा प्रदर्शन किया, इसका आकलन करने के लिए RTI आवेदनों को ट्रैक किया गया था।

जहां तमिलनाडु का राज्य सूचना आयोग राज्य विधान सभा का बहाना देकर अधिकांश सूचना साझा करने से मना कर दिया वहीं छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग ने कई बिंदुओं पर जानकारी देने से इंकार करते हुए कहा कि प्रचलित राज्य नियमों के तहत एक आवेदन में एक ही विषय पर जानकारी मांगी जा सकती है।

बिहार राज्य सूचना आयोग, जो 2020 और 2021 में प्रकाशित आकलन के तहत RTI अधिनियम के तहत कोई भी जानकारी प्रदान करने में विफल रहा था, ने 2021-22 में अपने प्रदर्शन में काफी सुधार किया और मांगी गई जानकारी का 67% का जवाब दिया।

रिपोर्ट कार्ड में आगे कहा गया है कि देश भर में बड़ी संख्या में सूचना आयोगों ने बिना आदेश पारित किए मामलों को वापस कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश ने प्राप्त अपीलों या शिकायतों का लगभग 40% बिना जवाब दिए वापस कर दिया।

प्रासंगिक जानकारी प्रदान करने वाले 18 सूचना आयुक्तों में से, मूल्यांकन में पाया गया कि 11 ने बिना कोई आदेश पारित किए अपील या शिकायतें वापस कर दीं। यह भी पाया गया कि कई सूचना आयोगों में प्रति आयुक्त निपटान की बेहद कम दर है।

सूचना का अधिकार-मौलिक अधिकार

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 प्रत्येक पब्लिक अथॉरिटी के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए पब्लिक अथॉरिटी के पास मौजूद सूचना तक सुरक्षित पहुंच के लिए केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों का गठन किया गया था।

अधिनियम की धारा 13 मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की पदावधि और सेवा की शर्तों का प्रावधान करती है।

RTI अधिनियम 21वीं सदी का कानून है जो भारत के लोगों को वैधानिक अधिकार, यानी ‘सूचना का अधिकार’ प्रदान करता है। हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने 1975 में उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राजनारायण मामले में सूचना के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी थी, जिसमें यह फैसला सुनाया गया कि “इस देश के लोगों को हर सार्वजनिक कार्रवाई को जानने का अधिकार है, वह सब कुछ जो उनके सार्वजनिक पदाधिकारियों द्वारा सार्वजनिक रूप से किये जाते हैं। नागरिक प्रत्येक सार्वजनिक कार्य के विवरण को उसके सभी पहलुओं में जानने के हकदार हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने एस.पी. गुप्ता और अन्य बनाम भारत के राष्ट्रपति के ऐतिहासिक मामले में सूचना के अधिकार को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी और कहा कि “एक खुली सरकार की अवधारणा जानने के अधिकार से प्रत्यक्ष रूप से निकलती है जो कि अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार के तहत गारंटीकृत है।

सूचना प्राप्त करने का अधिकार

प्रशासनिक अधिकारी, नागरिकों द्वारा मांगी गई जानकारी साझा करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं। सूचना में दस्तावेज़, ईमेल, अनुबंध, सर्कुलर, प्रेस विज्ञप्ति, रिकॉर्ड, मेमो, सलाह, लॉगबुक,सैंपल, मॉडल और सूचना के किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मोड जैसे टेप, कैसेट, वीडियो, डिस्केट आदि के रूप में सूचना का हर तरीका शामिल है जैसा कि RTI अधिनियम की धारा 2 (f) के तहत निर्दिष्ट है।

हालांकि, उपर्युक्त जानकारी के डिस्क्लोजर में राष्ट्र की सुरक्षा, निजी जानकारी और अन्य व्यक्ति की जानकारी की शर्तों का ध्यान रखना होता है जैसा कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8 और 9 के तहत उल्लेख किया गया है, जिसमें उन मामलों का उल्लेख है जिसके बारे में सूचना साझा करने से इनकार किया जा सकता है।

2019 में सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन

जुलाई 2019 में सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन किये गए थे। ये संशोधन अधिनियम की धारा 13 और 16 में किये गए थे।

मूल एक्ट की धारा 13 में केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पांच वर्ष (या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी हो) निर्धारित किया गया था। संशोधन के पश्चात कार्यकाल तय करने का अधिकार केंद्र सरकार पर छोड़ दिया गया है।

इसे तरह धारा 13 में पहले प्रावधान था कि मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें मुख्य चुनाव आयुक्त के समान होंगी। अब संशोधन के द्वारा मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएगी।

संशोधन के वक्त केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि चुनाव आयुक्त का पद संवैधानिक है जबकि मुख्य सूचना आयुक्त का पद वैधानिक है इसलिए दोनों के पदों की सेवा शर्तों के आधार पर तुलना नहीं की जा सकती।

इसी तरह 2019 के संशोधन के तहत राज्य सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन-सेवा शर्तें केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी। हालांकि अधिनियम की धारा 15(1) के तहत राज्य सूचना आयोग के गठन एवं 15(3) के तहत राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकार के पास है। राज्य सूचना आयुक्तों को हटाने के अधिकार राज्यपाल के पास है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!