मनरेगा की समीक्षा के लिए अमरजीत सिन्हा पैनल का गठन

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में ग्रामीण क्षेत्र की समीक्षा बैठक में महात्मा गाँधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) में प्रमुख विसंगतियों को चिह्नित करने के बाद, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस योजना के पुनर्गठन के लिए एक पैनल की स्थापना की है।

पैनल की अध्यक्षता प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार अमरजीत सिन्हा करेंगे। मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंत नागेश्वरन भी समीक्षा समूह में काम करेंगे।

मनरेगा की समीक्षा की जरुरत क्यों हैं?

प्रधान मंत्री ने चिंता व्यक्त की थी कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) के लिए निर्धारित फण्ड का उपयोग गरीब राज्यों को अधिक करना था लेकिन इसके उलट अधिक समृद्ध राज्यों ने अधिक इस्तेमाल किया।

अधिक धनी राज्यों के निवासियों को गरीबी उन्मूलन से सम्बंधित इस कार्यक्रम के तहत रोजगार प्राप्त करने का अधिक अवसर मिला, जो इस सिस्टम में संशोधन की आवश्यकता महसूस कराती है।

प्रधानमंत्री ने विभिन्न राज्यों में काम की मात्रा में विसंगतियों की ओर भी ध्यान दिलाया, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि कुछ राज्यों में, एक मनरेगा लाभार्थी को जमीन में 2 फीट गड्ढा खोदने के बराबर काम करना पड़ता है, जबकि कुछ अन्य राज्यों में एक व्यक्ति दिवस कार्य को पूरा करने के लिए एक से अधिक श्रम की आवश्यकता पड़ जाती है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, छह राज्यों- बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा और उत्तर प्रदेश ने चालू वित्त वर्ष (2022-23) में रोजगार योजना में अकुशल श्रमिकों के लिए 45,770 करोड़ रुपये में से अब तक 17,814 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।

दूसरे शब्दों में, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 के अनुसार, जिन छह राज्यों में भारत की गरीब आबादी का 64.5% हिस्सा है, उन्होंने इस वर्ष अब तक MGNREGS फंड का 38.9% उपयोग किया है।

इसके अलावा, अब तक 2,014 मिलियन व्यक्ति दिवस कार्य उत्पन्न हुए में से अब तक योजना ने उत्पन्न किया है, जिनमें से 815 मिलियन, या 40.4%, इन छह राज्यों में उत्पन्न हुए।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा)

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) मांग आधारित मजदूरी रोजगार योजना है।

योजना का मुख्य उद्देश्य मांग के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार को वित्तीय वर्ष में गारंटीकृत रोजगार के रूप में कम से कम 100 दिनों का अकुशल शारीरिक कार्य प्रदान करना है, जिसके परिणामस्वरूप निर्धारित गुणवत्ता और स्थायित्व की उत्पादक संपत्ति का निर्माण होता है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (महात्मा गांधी नरेगा) ग्रामीण क्षेत्रों में एक परिवार को न्यूनतम 100 दिनों के वेतन रोजगार की गारंटी देती है।

बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान उस लाभार्थी के लिए लागू है जिसने काम की मांग की है और काम की मांग की तारीख से 15 दिनों के भीतर काम की पेशकश नहीं की जा सकती है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (महात्मा गांधी नरेगा) की धारा 29 के अनुसार, केंद्र सरकार अधिनियम की अनुसूची 1 के तहत कार्यों की अनुमेय सूची में नए कार्यों को जोड़ सकती है। अधिनियम की अनुसूची 1 के तहत नए कार्यों को जोड़ना एक नियमित अभ्यास है और नए कार्यों को अधिनियम के फोकस और उद्देश्यों के अनुरूप योग्यता के आधार पर जोड़ा जाता है।

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