भारत की ग्रीन जीडीपी, पारंपरिक जीडीपी की तुलना में तेजी से बढ़ी है

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक के एक पेपर के अनुसार, भारत का हरित सकल घरेलू उत्पाद (ग्रीन जीडीपी/Green GDP) पारंपरिक सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में तेजी से बढ़ा।

यह कार्बन उत्सर्जन में कटौती, संसाधन उपयोग दक्षता में सुधार और स्वच्छ ऊर्जा क्षमता को बढ़ावा देने के उपाय करके संभव हो पाया।

जहां 2000 और 2010 के दशक में पारंपरिक जीडीपी 6.27% और 6.61% की वार्षिक औसत दर से बढ़ी, वहीं “ग्रीन जीडीपी” क्रमशः 6.34% और 6.71% की दर से बढ़ी

20वीं सदी के पिछले तीन दशकों में प्रवृत्ति इसके विपरीत रही है , जिसका अर्थ है कि उस अवधि में विकास पर्यावरण के लिए अधिक हानिकारक था।

ग्रीन जीडीपी की गणना

ग्रीन जीडीपी आर्थिक विकास की पर्यावरणीय लागतों के लिए पारंपरिक रूप से गणना की गई जीडीपी को समायोजित करता है।

यह जीडीपी से कम होता है यदि आर्थिक विकास पर्यावरण के अनुकूल नहीं है। RBI पेपर के अनुसार 2019 में यह लगभग 6% कम था। 21 वीं की शुरुआत में यह लगभग 8% कम था।

अब कम घाटे का मतलब है कि भारत पर्यावरणीय नुकसान में कटौती करने में सक्षम है।

ग्रीन जीडीपी फॉर्मूला 2015 की कीमतों पर वार्षिक जीडीपी के साथ शुरू होता है, जिसमें से यह पर्यावरण संरक्षण पर सरकार द्वारा खर्च को जोड़ते हुए हर साल पर्यावरण को होने वाली विभिन्न क्षति लागतों को घटाता है।

वर्ष 2019 में ग्रीन जीडीपी (G3) ₹165.9 ट्रिलियन थी, जबकि पारंपरिक जीडीपी 2015 की स्थिर कीमतों पर ₹175.8 ट्रिलियन थी।

पर्यावरण कुजनेट वक्र (EKC)

जीडीपी की पारम्परिक गणना की क आम आलोचना यह है कि यह पर्यावरण के क्षरण की लागत को नजरअंदाज करती है और इसलिए, इसके दृष्टिकोण में अदूरदर्शी है।

RBI पेपर पर्यावरण प्रदूषण और अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद के बीच संबंधों की समीक्षा करता है – विशेष रूप से पर्यावरण कुजनेट वक्र (Environmental Kuznets Curve: EKC) के संबंध में।

EKC का तर्क है कि आर्थिक विकास के प्रारंभिक चरणों में, प्रदूषण स्तर और प्रति व्यक्ति आय के बीच एक सकारात्मक संबंध प्रतीत होता है।

भारत में ग्रीन जीडीपी की पहल

संयुक्त राष्ट्र ने पहली बार 1993 में हरित जीडीपी के विचार का प्रस्ताव रखा था।

प्राकृतिक संसाधनों के लेखांकन के संबंध में भारत में पहले की पहलों में से एक ग्रीन इंडियन स्टेट्स ट्रस्ट (Green Indian States Trust: GIST) है जिसकी स्थापना 2003 में हुई थी ।

GIST ने एक परियोजना शुरू की – भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए हरित लेखा परियोजना (Green Accounting for Indian States & Union Territories Project: GAISP। इसका उद्देश्य पर्यावरण की दृष्टि से समायोजित राष्ट्रीय आय खातों के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार करना है।

GAISP का उद्देश्य समायोजित राज्य राष्ट्रीय आय के वार्षिक अनुमानों पर पहुंचना है। परियोजना के पहले चरण में आठ रिपोर्टें तैयार की गईं, जिनमें भारत में वन और वन उत्पादों, कृषि फसल भूमि, उप-मृदा संपत्ति, पारिस्थितिक पर्यटन, मीठे पानी के संसाधन आदि के अनुमान शामिल थे। उन सभी रिपोर्टों में व्यापक और विवरण लेखांकन पद्धति और भारत के प्राकृतिक संसाधनों का अनुमान प्रदान किया गया था।

हाल के वर्षों में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और यूरोपीय संघ द्वारा वर्ष 2017 में प्राकृतिक पूंजी लेखांकन और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन (Natural Capital Accounting and Valuation of Ecosystem Services: NCAVES) परियोजना शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य SEEA (पर्यावरण आर्थिक लेखांकन प्रणाली -System of Environmental Economic Accounting) के अनुसार पारिस्थितिकी तंत्र लेखांकन के लिए ज्ञान और लेखांकन प्रक्रिया को बढ़ावा देना है।

भारत के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI) ने NCAVES के तहत पर्यावरण लेखांकन के संकलन की शुरुआत की। इसका प्राथमिक उद्देश्य SEEA के अनुसार भारत के स्टॉक और प्राकृतिक संपत्ति के प्रवाह का अनुमान प्रदान करना था।

इसी तरह की एक परियोजना 2018 में भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (IIFM) के सहयोग से उत्तराखंड सरकार के अर्थशास्त्र और सांख्यिकी निदेशालय (DES) द्वारा की गई थी। इस परियोजना ने उत्तराखंड राज्य के लिए भूमि, जल, खनिज, वन के हरित लेखांकन के लिए एक फ्रेमवर्क प्रदान करने का प्रयास किया जिससे राज्य के वन संसाधनों के आर्थिक मूल्य और सकल घरेलू उत्पाद में इसके योगदान का अनुमान लगाया जा सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!