कोर्ट मार्शल ने ‘फर्जी’ मुठभेड़ के लिए कैप्टन को उम्रकैद की सजा की सिफारिश की

सेना की एक अदालत ने वर्ष 2020 में जम्मू और कश्मीर के शोपियां जिले के अमशीपोरा मुठभेड़ में तीन लोगों की हत्या में शामिल एक कैप्टन के लिए आजीवन कारावास की सिफारिश की है।

उत्तरी सेना के कमांडर द्वारा पुष्टि किए जाने के बाद इस सजा को अंतिम रूप दिया जाएगा। कोर्ट ऑफ इंक्वायरी (Court of Inquiry: CoI) के बाद भारतीय सेना के कप्तान का कोर्ट-मार्शल किया गया था और बाद में साक्ष्य  सारांश (summary of evidence)  में पाया गया कि उनकी कमान के तहत सैनिकों ने सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम के तहत अपनी शक्तियों से परे जाकर काम किया था।

कोर्ट ऑफ इंक्वायरी और प्रक्रिया

जब सेना चाहती है कि उसके कर्मियों के खिलाफ आरोपों की जांच हो, तो वह पहले इस उद्देश्य के लिए एक कोर्ट ऑफ इंक्वायरी (Court of Inquiry: CoI) स्थापित करती है। यह चरण पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने के समान है।

कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी शिकायत की जांच करती है, लेकिन सजा नहीं दे सकती।

CoI गवाहों के बयानों को रिकॉर्ड करती है, जो दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 161 के तहत एक पुलिस अधिकारी द्वारा गवाहों की परीक्षा के समान है।

कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के निष्कर्षों के आधार पर, आरोपी अधिकारी के कमांडिंग ऑफिसर द्वारा एक अस्थायी चार्जशीट तैयार की जाती है, जो पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल करने के समान है। इसके बाद आरोपों की सुनवाई होती है, जो नागरिकों से जुड़े मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त को प्रारंभिक सम्मन के समान है। इसके बाद साक्ष्य सारांश दर्ज किया जाता है, जो मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप तय करने के समान है।

एक बार यह प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद, एक सामान्य कोर्ट मार्शल (General court martial: GCM) का आदेश दिया जाता है। यह चरण नागरिकों से जुड़े मामलों में किसी न्यायिक अदालत द्वारा ट्रायल के आरंभ जैसा है।

नियमों के अनुसार, सेना कमांडर को सजा में छूट पर निर्णय लेने के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन अगर वह सजा बढ़ाना चाहता है, तो मामले को पुनरीक्षण के लिए GCM की उसी जूरी के पास वापस जाना होता है

सेना अधिनियम की धारा 164 के तहत, अभियुक्त एक पूर्व-पुष्टि याचिका (pre-confirmation) के साथ-साथ एक पश्च-पुष्टि याचिका (post- confirmation) दायर कर सकता है। एक पूर्व-पुष्टि याचिका सेना कमांडर के पास जाएगी, जो इसकी मेरिट पर गौर कर सकते हैं।

इन विकल्पों के समाप्त हो जाने के बाद, अभियुक्त सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (Armed Forces Tribunals: AFT) का दरवाजा खटखटा सकता है, जो सजा को निलंबित कर सकता है।

सेना अधिनियम के अनुसार, सैन्य अदालतें किसी नागरिक की हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के अपराधों के लिए अपनी कर्मियों की ट्रायल कर सकती हैं।  किसी नागरिक की हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों की सुनवाई एक सिविल कोर्ट द्वारा की जाती है।

बता दें कि पिछले वर्ष दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि वायु सेना, नौसेना और सेना सहित सशस्त्र बलों के सदस्य वेतन, पेंशन, पदोन्नति और अनुशासन के मुद्दों से जुड़े सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) के अंतिम फैसले को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालयों का दरवाजा खटखटा सकते हैं।  इस निर्णय से पहले, AFT के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही याचिका दायर की जा सकती थी।

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