प्रतिपूरक वनीकरण कोष अधिनियम (Compensatory Afforestation Fund Act)

प्रतिपूरक वनीकरण कार्यक्रम (Compensatory afforestation programme) यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि यदि औद्योगिक या बुनियादी ढांचे के विकास जैसे गैर-वन उद्देश्यों के लिए वन भूमि को ‘डायवर्ट’ किया जा रहा है, तो कम से कम उतनी भूमि के बराबर का क्षेत्र का अनिवार्य रूप से वनीकरण किया जाये।

वर्ष 2016 के प्रतिपूरक वनीकरण कोष अधिनियम (Compensatory Afforestation Fund Act) के माध्यम से प्रतिपूरक वनीकरण को कानूनी आवश्यकता बना दिया गया है।

यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि निर्धारित किये गए भूमि के नए पार्सल वनों के रूप में विकसित हों। परियोजना के डेवेलपर्स, जिनमें सरकारी या निजी क्षेत्र शामिल हैं, को इन नई भूमि पर संपूर्ण वनीकरण गतिविधि का वित्तपोषण करना होता है।

यह कानून इस तथ्य को भी स्वीकार करता है कि नयी भूमि पर विकसित नए वनों से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वे डायवर्ट किए गए वन के समान ही इमारती लकड़ी, बांस, ईंधन की लकड़ी, कार्बन पृथक्करण, मृदा संरक्षण, जल पुनर्भरण, और बीज फैलाव जैसी वस्तुएं और सेवाएं तुरंत प्रदान करे क्योंकि ऐसे नए वनों के विकास में काफी वक्त लग सकता है।

इसलिए परियोजना डेवलपर्स को एक विशेषज्ञ समिति द्वारा तय की गई गणना के आधार पर साफ किए जा रहे वनों के शुद्ध वर्तमान मूल्य (Net Present Value (NPV) का भी भुगतान करने के लिए भी कहा जाता है। हाल ही में संशोधित गणना के अनुसार, कंपनियों को 9.5 लाख रुपये से लेकर 16 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से NPV का भुगतान करना पड़ता है, जो वनों की गुणवत्ता पर निर्भर करता है।

यह सारा धन देश में वन आवरण की गुणवत्ता बढ़ाने, या सुधारने या इस उद्देश्य में मदद करने वाले कार्यों पर खर्च करने के लिए है।

यह धन केंद्र और राज्य स्तर पर इस उद्देश्य के लिए बनाई गई विशेष निधियों में रखा जाता है। यह धन पहले केंद्रीय कोष में जमा किया जाता है, जहां से यह उन राज्यों को ट्रांसफर किया जाता है जहां परियोजनाएं स्थित हैं।

केंद्रीय निधि कुल धन का 10 प्रतिशत तक प्रशासनिक व्ययों पर खर्च करने के लिए रख सकती है। बाकी राज्यों को उनके हिस्से के हिसाब से ट्रांसफर किया जाता है।

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