क्लाइमेट टिपिंग पॉइंट्स
साइंस जर्नल में प्रकाशित एक नए विश्लेषण के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ जाता है, तो कई जलवायु टिपिंग पॉइंट (tipping points) ट्रिगर हो सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने 200 हालिया शोध पत्रों से टिपिंग पॉइंट्स के सबूतों का विश्लेषण किया है। शोधकर्ताओं ने इस बात को समझने का प्रयास किया है कि किस तापमान पर पृथ्वी टिपिंग पॉइंट तक पहुंच जाएगा, पृथ्वी की अन्य प्रणालियों पर इसके क्या प्रभाव होंगे, किस समय तक इसकी प्रभाव को महसूस किया जाएगा।
वर्ष 2008 से प्रकाशित आंकड़ों के आधार पर शोध में पाया गया कि वैश्विक तापन (ग्लोबल हीटिंग) के मौजूदा स्तरों पर दुनिया पहले से ही छह खतरनाक क्लाइमेट टिपिंग बिंदुओं को ट्रिगर करने का खतरा उठा रही है, और प्रत्येक दसवें हिस्से में वार्मिंग के साथ खतरा बढ़ जाता है।
“क्लाइमेट टिपिंग पॉइंट्स” (climate tipping points) का विचार पहली बार संयुक्त राष्ट्र के जलवायु विज्ञान समूह, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) द्वारा पेश किया गया था। टिपिंग पॉइंट का मतलब है वह क्रिटिकल सीमा जिसको पार करने पर पृथ्वी की कई प्रणालियों में कई व्यापक बदलाव आ सकते हैं जिसके कई प्रभाव सामने आएंगे।
यदि क्लाइमेट इस टिपिंग पॉइंट्स को पार कर जाता है तो वे पृथ्वी की प्रणालियों के संचालन के तरीके में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं, जिससे महासागरों, मौसम और केमिकल प्रोसेसेज को प्रभावित किया जा सकता है, जो संयुक्त राष्ट्र के अनुसार “अपरिवर्तनीय” हो सकता है।
एक बार जब एक महत्वपूर्ण टिपिंग पॉइंट्स पार हो जाता है तो क्लाइमेट सिस्टम का टूटना आत्मनिर्भर हो जाता है, तो आगे भी वार्मिंग न होने पर भी यह जारी रहेगी।
साइंस जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार, “संभावित” छह पॉइंट्स को पार किया जा सकता है: ग्रीनलैंड आइस शीट का पिघलना, पश्चिम अंटार्कटिक बर्फ शीट का पिघलना, उत्तरी अटलांटिक के ध्रुवीय क्षेत्र में महासागर सर्कुलेशन का टूट जाना, निम्न अक्षांशों में कोरल रीफ का मरना , उत्तरी क्षेत्रों में पर्माफ्रॉस्ट का अचानक पिघलना और बेरेन्ट्स सागर में अचानक समुद्री बर्फ का नुकसान।