सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड की सजा संबंधी दिशा-निर्देश तैयार करने का मामला 5 न्यायाधीशों की पीठ को सौंपा

मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने मौत की सजा सुनाने संबंधी परिस्थितियां को कम करने का मामला पांच न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया है।

संविधान पीठ एक दिशा-निर्देश तय करेगी जिसके तहत मौत की सजा के निर्णय तक पहुंचने से पहले एक दोषी को “वास्तविक और सार्थक” सुनवाई का मौका दिया जा सके ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि फांसी ही एकमात्र उपयुक्त सजा है।

पिछली सुनवाई के दौरान 17 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि मृत्युदंड एक ऐसी सजा है जिसके बाद दोषी मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और मरने के बाद फैसले को किसी भी हाल में पलटा या बदला नहीं जा सकता है। इसलिए अभियुक्त को राहत संबंधी परिस्थितियों पर सुनवाई का हर अवसर उपलब्ध कराया जाना चाहिए, ताकि अदालत निर्णय ले सके कि उन अपराधों के मामले में मृत्युदंड वांछित है या नहीं?

मौजूदा मामला इरफान नाम के एक व्यक्ति से जुड़ा हुआ है। उसने निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा को चुनौती दी थी। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भी सजा की पुष्टि की थी।

सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि आरोपी को अपने अपराध की गंभीरता को कम साबित करने का प्रत्येक अवसर देना जरूरी है ताकि निचली अदालतें को इस बात के लिए राजी किया जा सके कि उस मामले में मृत्युदंड की जरूरत नहीं है।

बचन सिंह (1980) मामले के ऐतिहासिक संविधान पीठ के निर्णय का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उस निर्णय ने मौत की सजा की संवैधानिकता को बरकरार रखा था, इस शर्त पर कि इसे “दुर्लभ में दुर्लभतम” (रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर’) मामलों में इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

बता दें कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली की प्रोजेक्ट 39A द्वारा एक आवेदन दायर किया गया है जिसमें मौत की सजा पर बहस करने के लिए आरोपी के पक्ष में सजा कम करने वाली जानकारी एकत्र करने के लिए एक जांचकर्ता की अनुमति की मांग की गई है।

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