Tankai method: संस्कृति मंत्रालय और भारतीय नौसेना ने “जहाज निर्माण की टंकाई विधि” को पुनर्जीवित करने हेतु MoU पर हस्ताक्षर किए

जहाज निर्माण की 2000 साल पुरानी तकनीक, जिसे ‘जहाज निर्माण की सिलाई वाली विधि’ (टंकाई विधि) के रूप में जाना जाता है, को पुनर्जीवित और उसे संरक्षित करने की दिशा में एक उल्लेखनीय पहल करते हुए, संस्कृति मंत्रालय और भारतीय नौसेना ने एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं।

भारतीय नौसेना इस संपूर्ण परियोजना के कार्यान्वयन एवं निष्पादन की निगरानी करेगी।

टंकाई वाले जहाज के ऐतिहासिक महत्व और पारंपरिक शिल्प कौशल के संरक्षण की दृष्टि से, इस जहाज का भारत में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक मूल्य है।

संपूर्ण इतिहास में, भारत की एक मजबूत समुद्री परंपरा रही है और सिलाई/टंकाई वाले जहाजों के उपयोग ने व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और अन्वेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कीलों का उपयोग करने के बजाय लकड़ी के तख्तों की एक साथ सिलाई करके बनाए गए इन जहाजों ने लचीलापन और स्थायित्व प्रदान किया, जिससे उनमें उथले और रेत की पट्टियों से होने वाली क्षति की संभावना कम हुई।

भले ही यूरोपीय जहाजों के आगमन से जहाज निर्माण की तकनीकों में बदलाव आया, लेकिन भारत के कुछ तटीय क्षेत्रों में, मुख्य रूप से छोटी स्थानीय मछली पकड़ने वाली नौकाओं के संदर्भ में, जहाजों की सिलाई की यह कला बची हुई है।

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