Default Bail: वैधानिक जमानत के तहत राहत अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी मामले की जांच पूरी किए बिना, एक जांच एजेंसी चार्जशीट या अभियोजन शिकायत केवल एक गिरफ्तार अभियुक्त को CrPC की धारा 167 (2) के तहत डिफॉल्ट जमानत (Default Bail) के अधिकार से वंचित करने के लिए दायर नहीं कर सकती है।

इस तरह की चार्जशीट, अगर जांच प्राधिकारी द्वारा पहले जांच पूरी किए बिना दायर की जाती है, तो व्यक्ति को धारा 167 (2) CrPC के तहत प्राप्त डिफॉल्ट जमानत के अधिकार को समाप्त नहीं किया जाएगा।

धारा 167 कहती है कि एक गिरफ्तार व्यक्ति 90 दिनों के बाद डिफॉल्ट जमानत का हकदार होगा, जहां जांच मृत्युदंड, आजीवन कारावास या कम से कम 10 साल की सजा से जुड़ी हो, वहीं किसी अन्य अपराध के मामले में जांच पूरी नहीं होने पर 60 दिनों के पश्चात डिफॉल्ट जमानत का अधिकार उपलब्ध होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि CrPC की धारा 167 (2) के तहत वैधानिक जमानत (statutory bail) की राहत भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है, और इस तरह के अधिकार का उल्लंघन सीधे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट का विषय बनता है।

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