विचाराधीन कैदियों के मताधिकार पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

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सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव कानून में उस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने का फैसला किया है, जो विचाराधीन कैदियों, दीवानी जेलों में बंद व्यक्तियों और जेलों में अपनी सजा काट रहे दोषियों को वोट डालने से पूर्ण प्रतिबंध लगाता है।

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) यू.यू. ललित ने नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु के एक छात्र द्वारा दायर याचिका पर केंद्र, केंद्रीय गृह मंत्रालय और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया

क्या है प्रावधान?

  • याचिकाकर्ता ने कहा कि जमानत पर छूटे कैदी वोट दे सकते हैं, लेकिन विचाराधीन कैदी (undertrials), जिनकी बेगुनाही या दोष निर्णायक रूप से निर्धारित नहीं किया गया है, उन्हें वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है।
  • याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) में कहा गया है कि “कोई भी व्यक्ति किसी भी चुनाव में मतदान नहीं करेगा यदि वह जेल में बंद है, चाहे वह कारावास की सजा काट रहा है या ट्रांसपोर्टेशन या अन्यथा, या पुलिस की कानूनी हिरासत में है।”
  • याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि “व्यापक भाषा” के उपयोग के माध्यम से मनमाने ढंग से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधान, आबादी के एक बड़े हिस्से को मताधिकार वंचित करता है।
  • दलील में तर्क दिया गया कि यह प्रावधान समानता के अधिकार, वोट के अधिकार (अनुच्छेद 326) का उल्लंघन करता है और यह मनमाना प्रतिबन्ध भी है।
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