सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सिख गुरुद्वारा (प्रबंधन) अधिनियम, 2014 की वैधता को बरकरार रखा
सुप्रीम कोर्ट ने 20 सितंबर को हरियाणा सिख गुरुद्वारा (प्रबंधन) अधिनियम, 2014 (Haryana Sikh Gurdwara (Management) Act, 2014) की वैधता को बरकरार रखा, और कहा कि इस कानून ने “राज्य में सिख अल्पसंख्यकों के मामलों को केवल सिखों के प्रबंधन में दिया है”।
क्या कहा न्यायालय ने?
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा की कि राज्य ने कानून बनाकर सिख समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं किया है।
पीठ ने कहा, कि चूंकि राज्य में सिख अल्पसंख्यकों के मामलों का प्रबंधन केवल सिखों द्वारा ही किया जाना है, इसलिए इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत प्रदत्त किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि हरियाणा सिख गुरुद्वारा (प्रबंधन) अधिनियम, 2014 ने हरियाणा में उन ऐतिहासिक गुरुद्वारों, गुरुद्वारों के प्रबंधन के लिए एक अलग न्यायिक इकाई बनाई, जिनकी आय ₹20 लाख से अधिक और कम थी।
अधिनियम का उद्देश्य एक कानूनी प्रक्रिया प्रदान करना था जिसके द्वारा गुरुद्वारों को उनके उचित उपयोग, प्रशासन, नियंत्रण और वित्तीय प्रबंधन सुधारों के लिए हरियाणा के सिखों के एकमात्र नियंत्रण में लाया गया ताकि इसे समुदाय के धार्मिक विचारों के अनुरूप बनाया जा सके।
अधिनियम लागू होने तक, हरियाणा में स्थित गुरुद्वारे, सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 के प्रावधानों द्वारा शासित थे।
याचिकाकर्ताओं ने इस अधिनियम को इस आधार पर चुनौती दी थी कि यह पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है और इसका उद्देश्य सिखों को विभाजित करना था ।
उन्होंने तर्क दिया कि हरियाणा राज्य ने सिख समुदाय के धार्मिक मामलों में दखल दिया है।
इन तर्कों को खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति गुप्ता, जिन्होंने 58-पृष्ठ के फैसले को लिखा, ने कहा कि अधिनियम ने सिखों के धार्मिक मामलों को हरियाणा में अल्पसंख्यक, विशेष रूप से “सिखों के हाथों में उसी तरह दे दिया है जैसा कि 1925 के कानून के तहत था।
हरियाणा अधिनियम में हरियाणा सिख गुरुद्वारा न्यायिक आयोग का भी प्रावधान है।
गुरुद्वारा के मामलों को फिर से स्थानीय गुरुद्वारा समिति द्वारा प्रबंधित करने की आवश्यकता है। चूंकि राज्य में सिख अल्पसंख्यकों के मामलों का प्रबंधन अकेले सिखों द्वारा किया जाना है, इसलिए इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत प्रदत्त किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है।
अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि इस मुद्दे पर कानून बनाने की विशेष शक्ति संसद के पास है न कि हरियाणा के पास। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक सक्षम राज्य विधायिका अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले विषयों पर कानून बना सकती है।