बोत्सवाना हीरे में रिंगवूडाइट-पृथ्वी के कोर के निकट जल के विशाल भंडार का संकेत
नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, पानी का विशाल भंडार पृथ्वी के नीचे तथाकथित संक्रमण क्षेत्र (transition zone) में ऊपरी और निचले मेंटल के बीच 410 से 660 किलोमीटर की गहराई पर स्थित है।
नया रहस्योद्घाटन हाल ही में बोत्सवाना में एक हीरे की खदान में पाए गए हीरे (Botswana diamond) के अध्ययन पर आधारित है, जिसमें रिंगवूडाइट, फेरोपेरीक्लेज़, एनस्टैटाइट (ringwoodite, ferropericlase, enstatite) और अन्य खनिजों के चिह्न शामिल हैं, जो पृथ्वी की सतह से 660 किलोमीटर (410 मील) नीचे हीरे के निर्माण (diamond फार्मेशन) की ओर इशारा करता है।
हाइड्रस चरणों के साथ रिंगवूडाइट का पाया जाना इस संक्रमण क्षेत्र में एक नम वातावरण का संकेत देती है।
प्राकृतिक हीरे आमतौर पर 150 से 250 किलोमीटर की गहराई में मेंटल में बनते हैं, लेकिन कुछ हीरे बहुत गहरे नीचे से भी आ सकते हैं।
नए अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी के ऊपरी और निचले मेंटल के बीच संक्रमण क्षेत्र में काफी मात्रा में पानी है। शोध दल ने रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी और FTIR स्पेक्ट्रोमेट्री तकनीकों का उपयोग करके पृथ्वी की सतह के नीचे दुर्लभ हीरे का विश्लेषण किया।
अध्ययन ने इस बात की पुष्टि की है समुद्र का पानी सबडक्टिंग स्लैब में मौजूद है। इसका मतलब है कि हमारी पृथ्वी के जल चक्र में पृथ्वी का आंतरिक भाग भी शामिल है। लंबे समय से इस सिद्धांत के बारे में बताया जाता रहा है परन्तु अब जाकर वैज्ञानिकों ने इसकी पुष्टि करने का दावा किया है।
रिंगवूडाइट (ringwoodite) Mg2SiO4 (मैग्नीशियम सिलिकेट) का एक उच्च दबाव वाला चरण है जो उच्च तापमान और 525 और 660 किमी के बीच पृथ्वी के मेंटल के दबाव पर निर्मित होता है।
विश्लेषणों से पता चलता है कि खोजे गए बोत्सवाना डायमंड में कई रिंगवूडाइट शामिल हैं – जो अधिक पानी होने का संकेत देता है।
बता दें कि पृथ्वी का अधिकांश सरफेस महासागर से आच्छादित है। फिर भी पृथ्वी के धरातल और कोर के बीच हजारों किलोमीटर की दूरी की बाद भी पानी नहीं प्राप्त होता। लेकिन भूपर्पटी (Earth’s crust) दरार और खंडित भाग से युक्त है, जिसमें अलग-अलग टेक्टोनिक प्लेट हैं जो एक साथ टकराती हैं और एक दूसरे के किनारों के नीचे खिसक जाती हैं।
इन सबडक्शन ज़ोन में पानी पृथ्वी में गहराई में रिस जाता है और निचले मेंटल तक पहुँच जाता है। समय के साथ यह ज्वालामुखी गतिविधि के माध्यम से पृथ्वी के सरफेस पर वापस आ जाता है। यह स्लर्प-डाउन, स्पू-आउट चक्र गहरे जल चक्र (deep water cycle) के रूप में जाना जाता है, जो सतह पर सक्रिय जल चक्र से अलग है।
हमारे ग्रह की भूगर्भीय गतिविधि को समझने के लिए यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि यह कैसे काम करता है और वहां कितना पानी है।
पानी की उपस्थिति ज्वालामुखी विस्फोट की विस्फोटकता को प्रभावित कर सकती है और भूकंपीय गतिविधि में भूमिका निभा सकती है। हालांकि मानव की पहुंच इतनी गहराई तक नहीं है, फिर भी पृथ्वी के नीचे पानी के सबूत हीरे के रूप में प्राप्त हो जाता है जो अत्यधिक गर्मी और दबाव में क्रिस्टल केज बनाते हैं।