बच्चे का उपनाम तय करने का अधिकार मां को है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को फैसला सुनाया कि एक मां को बच्चे की एकमात्र स्वाभाविक अभिभावक (natural guardian ) होने के नाते, बच्चे का उपनाम तय करने का अधिकार है, और अपने पहले पति की मृत्यु के बाद भी, बच्चे को अपने नए परिवार में शामिल करने से नहीं रोका जा सकता है न ही दूसरे पति का उपनाम देने से रोका जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह फैसला आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के 2014 के उस फैसले को खारिज करते हुए दिया, जिसमें एक महिला को अपने बच्चे को अपने मृत पति का उपनाम बहाल करने का निर्देश दिया गया था और यह भी सुनिश्चित किया गया था कि आधिकारिक रिकॉर्ड में मृतक का नाम सभी जगहों पर बच्चा के पिता के रूप में उल्लेख किया जाये।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने

  • सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी और कृष्ण मुरारी की एक पीठ ने कहा कि किसी महिला के पति के निधन के बाद बच्चे का सर्वोत्तम हित तय करने का अधिकार माँ का है और उसे बच्चे का उपनाम चुनने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए।
  • एक माँ को अपने पति की मृत्यु के बाद बच्चे का उपनाम तय करने का पूर्ण अधिकार है और उसे बच्चे के रिकॉर्ड में मृतक के उपनाम का उपयोग करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
  • यदि वह पुनर्विवाह करती है, तो अदालत ने कहा, बच्चे को उसके दूसरे पति का उपनाम दिया जा सकता है।
  • यह भी कि यदि यह कार्य नाबालिग के सर्वोपरि हित में है तो माँ अपने बच्चे को गोद लेने के लिए भी दे सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि गीता हरिहरन और अन्य बनाम भारतीय रिजर्व बैंक मामले में इसी अदालत ने हिंदू अल्पसंख्यक और दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 (Hindu Minority and Adoption Act, 1956) की धारा 6 के तहत नाबालिग बच्चे के स्वाभाविक अभिभावक के रूप में उसके अधिकार को मजबूत करते हुए, माता को पिता के समान पद प्रदान किया था।
  • पीठ ने कहा कि उपनाम केवल वंश का संकेत नहीं है और इसे केवल इतिहास, संस्कृति और वंश के संदर्भ में नहीं समझा जाना चाहिए।
  • किसी का नाम महत्वपूर्ण है क्योंकि एक बच्चा इससे अपनी पहचान प्राप्त करता है और यदि उसका उपनाम मौजूदा परिवार से अलग होने पर उसे अनावश्यक सवालों से जूझना पड़ेगा।
  • अदालत ने 1956 के हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम (Hindu Adoption and Maintenance Act) की धारा 9(3) का हवाला दिया, जो यह प्रावधान करती है कि यदि पिता की मृत्यु हो गई है या उसने पूरी तरह से सांसारिक दुनिया को त्याग दिया है या हिंदू नहीं रह गया है, या सक्षम न्यायालय द्वारा विकृतचित्त घोषित किया गया हो तो मां बच्चे को गोद लेने के लिए दे सकती है।
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