सरकार द्वारा मंदिरों के प्रशासनिक नियंत्रण पर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका
सुप्रीम कोर्ट एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रहा है जिसमें तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ न्यास अधिनियम, 1959 (Tamil Nadu Hindu Religious and Charitable Endowments Act, 1959) और सभी राज्यों के धार्मिक न्यास अधिनियमों ( Endowment Acts) को चुनौती दी गई है।
PIL प्रमुख बिंदु
जनहित याचिका में मांग की गई है कि मुस्लिमों, पारसियों और ईसाइयों के समान ही हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों को सरकार के हस्तक्षेप के बिना अपने धार्मिक स्थलों के प्रशासन का समान अधिकार मिलनी चाहिए।
याचिकाकर्ता ने तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ न्यास अधिनियम, 1959 ( Tamil Nadu Hindu Religious and Charitable Endowments Act, 1959) के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है, जिसका कथित तौर पर राज्य सरकार द्वारा “मनमाने ढंग से और असंवैधानिक रूप से” इन मंदिरों और हिंदू धार्मिक संस्थानों के प्रशासन, प्रबंधन और नियंत्रण पर कब्जा करने के लिए इस्तेमाल किया गया था।
याचिका में 1959 के अधिनियम की धारा 21, 23, 27, 28, 47, 49, 49बी, 53, 55, 56 और 114 की संवैधानिक वैधता और अधिकारिता को चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ता इन धाराओं को इस आधार पर चुनौती दी है कि ये धाराएं भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लंघन करती हैं।
उनका कहना है कि हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को मुसलमानों, पारसियों और ईसाइयों के सामान अपने धार्मिक स्थलों की स्थापना, प्रबंधन और रखरखाव के समान अधिकार होने चाहिए और राज्य इस अधिकार को कम नहीं कर सकता।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 केवल अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की रक्षा की बात करता है अन्य धर्मों के बारे में बात नहीं करता ।
जनहित याचिका में दावा किया गया है कि देश में 900,000 मंदिरों में से लगभग 400,000 सरकारी नियंत्रण में हैं, जबकि एक भी चर्च या मस्जिद या इससे संबंधित धार्मिक निकाय ऐसा नहीं है जहां सरकार का कोई नियंत्रण या हस्तक्षेप देखा जाता हो।
उल्लेखनीय है कि धार्मिक अनुदान (Religious endowments) समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं। इस तरह केंद्र और राज्यों, दोनों इस विषय पर कानून बनाने के लिए अधिकृत हैं। इससे राज्य धार्मिक स्थलों के प्रबंधन, अधीक्षण और उस पर लेवी लगाने पर कुछ हद तक नियंत्रण कर सकते हैं।
हालाँकि, भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने जनहित याचिका (PIL) की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हुए मौखिक तौर पर कहा कि चूंकि मंदिरों के राजस्व समाज से आते हैं, इसलिए सरकार इन राजस्व का इस्तेमाल कॉलेज और विश्वविद्यालय बनाकर लोगों की भलाई के लिए वापस समाज को दे सकती हैं ।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 1863 के धार्मिक न्यास अधिनियम (Religious Endowments Act) को संशोधित करने की आवश्यकता पर सवाल उठाया, यह देखते हुए कि क़ानून ने मंदिरों को “समाज की बड़ी जरूरतों” को पूरा करने में सक्षम बनाया है।