एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार केस क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने 24 अगस्त को कहा कि वह वर्ष 2013 के अपने उस एक फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए तीन-न्यायाधीशों की बेंच का गठन करेगा, जिसमें कहा गया था कि एक राजनीतिक दल द्वारा किए चुनाव से पहले किये वादे जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People (RP) Act) के तहत एक भ्रष्ट आचरण नहीं हो सकते।
तमिलनाडु में गरीब परिवारों को रंगीन टेलीविजन सेट वितरित करने के द्रमुक के चुनाव पूर्व वादे के आधार पर एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार (S. Subramaniam Balaji versus Government of Tamil Nadu, 2013) के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मुफ्त उपहार का वादा (free gifts) करना जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत केवल एक व्यक्तिगत उम्मीदवार के लिए भ्रष्ट आचरण (corrupt practice) हो सकता है, न कि उसकी पार्टी के लिए।
शीर्ष अदालत की दो-न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा दिया गया बालाजी निर्णय (एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार, 2013), नौ साल बाद हाल में तब सुर्खियों में आया जब मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया गया कि चुनाव पूर्व वादे के मामले में किसी राजनीतिक दल और उसके उम्मीदवार के बीच द्वंद्व नहीं हो सकता या अंतर नहीं किया जा सकता।
वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी. दातार, जो बालाजी मामले में एक वकील भी थे, ने मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना के समक्ष तर्कहीन मुफ्त उपहार पर लगाम लगाने के तरीकों पर सुनवाई के दौरान दलील दी कि उम्मीदवार जो वादा करता है, वही उसकी पार्टी चाहती है कि वह ऐसा वादा करे। इसलिए पार्टी भ्रष्ट आचरण के दायित्व से नहीं बच सकती। एक उम्मीदवार अपनी पार्टी के समर्थन से वादा करता है। इस तरह एक एक उम्मीदवार और उसकी पार्टी के बीच कोई द्वंद्व नहीं हो सकता है।