IPBES रिपोर्ट: मानव गतिविधियों से 37,000 ‘विदेशी प्रजातियाँ’ दूसरे क्षेत्र में आ गई हैं

इंटर-गवर्नमेंटल प्लेटफार्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज (IPBES) ने “आक्रामक विदेशी प्रजातियों और उनके नियंत्रण पर आकलन रिपोर्ट” (Assessment Report on Invasive Alien Species and their Control) प्रकाशित की है।

IPBES

IPBES एक स्वतंत्र अंतरसरकारी निकाय है जो जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए साइंस पॉलिसी इंटरफ़ेस को मजबूत करने के लिए स्थापित किया गया है। यह IPCC के समान काम करता है, जो संयुक्त राष्ट्र का जलवायु विज्ञान संगठन है।

इसकी स्थापना 2012 में बुसान आउटकम डॉक्यूमेंट से हुई थी। इस डॉक्यूमेंट को जून 2010 में जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर एक बैठक में अपनाए गया था। (IPBES सचिवालय की सीट जर्मनी के बॉन में स्थित है। यह संयुक्त राष्ट्र की संस्था नहीं है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

कई प्रकार की मानवीय गतिविधियों द्वारा दुनिया भर के क्षेत्रों और बायोम में पौधों और जानवरों सहित 37,000 विदेशी प्रजातियाँ लाई गई हैं।

इनमें  3,500 से अधिक आक्रामक विदेशी प्रजातियां भी शामिल हैं और आक्रामक विदेशी प्रजातियों ने दर्ज किए गए 60% वैश्विक पौधों और जानवरों के विलुप्त होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

विश्व में जैव विविधतता के नुकसान के लिए जिम्मेदार पांच कारकों में आक्रामक विदेशी प्रजातियां भी शामिल हैं। अन्य चार कारक हैं;  भूमि और समुद्र के उपयोग बदलाव, जीवों का प्रत्यक्ष दोहन, जलवायु परिवर्तन तथा प्रदूषण।

वैसे सभी विदेशी प्रजातियाँ जैव विविधता, स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र और प्रजातियों पर नकारात्मक प्रभाव नहीं डालती हैं, लेकिन एक बड़ा हिस्सा ऐसा करती है – जिसकी वजह से इन्हें आक्रामक विदेशी प्रजातियों के रूप में जाना जाता है।

लगभग 6% विदेशी पौधे; 22% विदेशी अकशेरुकी (invertebrates); 14% विदेशी कशेरुकी; और 11% विदेशी माइक्रोब्स आक्रामक माने जाते हैं, जो प्रकृति और लोगों के लिए बड़ा खतरा पैदा करते हैं।

 जलकुंभी (water hyacinth) भूमि पर दुनिया की सबसे व्यापक आक्रामक विदेशी प्रजाति है। लैंटाना और काला चूहा विश्व स्तर पर दूसरे और तीसरे सबसे व्यापक रूप से फैले हुए हैं।

आक्रामक विदेशी प्रजातियों की वैश्विक आर्थिक लागत सालाना 423 अरब डॉलर से अधिक हो गई है।

एडीज एल्बोपिक्टस और एडीज एजिप्टी जैसी आक्रामक विदेशी प्रजातियां मलेरिया, जीका और वेस्ट नाइल फीवर जैसी बीमारियां फैलाती हैं, जबकि अन्य प्रजातियाँ भी आजीविका पर प्रभाव डालती हैं जैसे पूर्वी अफ्रीका में विक्टोरिया झील में जलकुंभी के कारण तिलापिया की कमी हो गई, जिससे स्थानीय मत्स्य पालन प्रभावित हुआ। .

खाद्य आपूर्ति में कमी विदेशी आक्रामक प्रजातियों का सबसे आम प्रभाव है।  कैरेबियाई फाल्स मसल्स प्रजाति देशी क्लैम और ओएस्टर को नष्ट करके केरल में स्थानीय रूप से महत्वपूर्ण मत्स्य संसाधनों को नुकसान पहुंचा रही है।

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