तमिलनाडु सरकार चोल काल की छह मूर्तियों को अमेरिका से वापस लाने के लिए प्रयास कर रही है
तमिलनाडु आइडल विंग सीआईडी ने 24 अगस्त को कहा कि उसने चोल-युग की छह कांस्य मूर्तियों (six Chola-era bronze idols) को वापस लाने के लिए कदम उठाए हैं, जिन्हें 1960 के दशक में कल्लाकुरिची जिले के नारीश्वर सिवन मंदिर (Nareeswara Sivan temple), वीरचोलपुरम से चुराया गया था, और वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका के विभिन्न संग्रहालयों में रखा गया है।
मंदिर का निर्माण 900 साल पहले चोल राजा राजेंद्र चोल (Rajendra Chola) ने करवाया था।
आपराधिक मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता के संबंध में भारत और अमेरिका के बीच एक समझौते के तहत चोरी की गयी मूर्तियों को वापस करने का अनुरोध पत्र “उचित माध्यम से” भेजा गया है।
जिन मूर्तियों को वापस लाने की प्रक्रिया चल रही है उनमें त्रिपुरांतकम, थिरुपुरसुंदरी, नटराज, दक्षिणामूर्ति वीणाधारा, और संत सुंदरार की व उनकी पत्नी परवई नयाचिर (Tripuranthakam, Thirupurasundari, Nataraja, Dakshinamurthy Veenadhara, and Saint Sundarar with his wife Paravai Natchiyaar) की प्राचीन पंचलौह मूर्तियां (Panchaloha idols) शामिल हैं। फ्रेंच इंस्टीट्यूट ऑफ पुडुचेरी (आईएफपी) ने भी जांच को आगे बढ़ाने के लिए आइडल विंग को 1956 में ली गई मूर्तियों की तस्वीरें प्रदान कीं।
पंचलौह की मूर्तियाँ पाँच धातुओं – सोना, कांस्य, लोहा, चाँदी और सीसा से बनी होती हैं।
राजेंद्र चोल प्रथम (1014-से 1044 ई.)
राजेंद्र चोल प्रथम (1014-से 1044 ई.) राजराजा प्रथम के पुत्र थे। अपने शासनकाल के दौरान, उन्होंने पहले से ही विशाल चोल साम्राज्य के प्रभाव को उत्तर में गंगा नदी के तट तक और समुद्र के पार बढ़ाया।
उन्होंने अपने पिता की नीतियों को जारी रखा और यहां तक कि इन अभियानों के लिए एक नौसेना विकसित करते हुए गंगा घाटी, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों का अभियान किया।
उन्होंने पाल राजा महिपाल को हराने के बाद बंगाल में गंगा तक अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि की। इस जीत का जश्न मनाने के लिए उन्होंने ‘गंगईकोंडाचोलपुरम’ नामक एक नई राजधानी की स्थापना की और अपने लिए “गंगई-कोंडा” (गंगा के विजेता) की उपाधि प्राप्त की।
वह विद्या के महान संरक्षक थे और पंडित-चोल के नाम से जाने जाते थे। उन्होंने परकेसरी और युद्धमल्ला की उपाधि धारण की।
चोल कला शैली
चोल शैली की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं गर्भगृह, विमान, मंडप और गोपुरम हैं।
चोल कांस्य प्रतिमाओं को विश्व में सर्वश्रेष्ठ कला शैलियों में से एक माना जाता है। हालांकि अधिकांश प्रतिमाएं देवताओं के थे, कभी-कभी कुछ प्रतिमा भक्तों के भी बनाए गए थे।
चोल पेंटिंग्स में एक बरगद के पेड़ के नीचे का चित्रण प्रसिद्ध है। इसकी पहचान ऋषि अगस्त्य और दक्षिणामूर्ति ( Dakshinamurthy) के रूप में हुई है।
दक्षिणामूर्ति की मूर्तियां पल्लव काल के कांचीपुरम स्थित कैलासनाथ मंदिर और श्रीनिवासनल्लूर के चोल मंदिर में भी मिलीं हैं।
दक्षिणामूर्ति में वस्तुतः भगवान शिव को सभी प्रकार के ज्ञान के गुरु (शिक्षक) के रूप में दर्शाया गया है।