ऑक्सफैम इंडिया ने जारी की ‘इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट’
ऑक्सफैम इंडिया ने ‘इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट’ (India Discrimination Report) जारी की है। रिपोर्ट के निष्कर्ष 2004-05 से 2019-20 तक रोजगार और श्रम पर सरकार के आंकड़ों पर आधारित हैं।
रिपोर्ट के निष्कर्ष
श्रम बाजार में भेदभाव तब होता है जब समान क्षमता वाले लोगों के साथ उनकी पहचान या सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण अलग व्यवहार किया जाता है।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत के गांवों में नौकरियों के लिए एक पुरुष के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाली महिला को अपने जेंडर के कारण भेदभाव का सामना करने की 100% संभावना रहती है और शहरों में काम पाने की संभावना केवल 2% होती है।
सामाजिक दबाव और नियोक्ता पूर्वाग्रहों ने महिलाओं को काम पर रखने के खिलाफ पूर्वाग्रह में योगदान दिया।
देश में कम महिला श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate: LFPR) के पीछे एक प्रमुख कारक भेदभाव है।
केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के अनुसार, भारत में महिलाओं के लिए LFPR (शहरी और ग्रामीण) 2020-21 में केवल 25.1 प्रतिशत था। यह विश्व बैंक के नवीनतम अनुमानों के अनुसार ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका की तुलना में काफी कम है। 2021 में दक्षिण अफ्रीका में महिलाओं के लिए LFPR 46 प्रतिशत है।
शैक्षिक योग्यता और कार्य अनुभव के बावजूद, सामाजिक और नियोक्ता पूर्वाग्रहों के कारण श्रम बाजार में महिलाओं के साथ भेदभाव किया किये जाने की संभावना है। वेतनभोगी महिलाओं के लिए कम वेतन भेदभाव (67 प्रतिशत) और शिक्षा और कार्य अनुभव की कमी (33 प्रतिशत) के कारण है।
यह रिपोर्ट सरकार से सभी महिलाओं के लिए समान वेतन और काम की सुरक्षा के उपायों को लागू करने का आह्वान करती है।
सरकार को कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को भी प्रोत्साहित करना चाहिए जिसमें वेतन में वृद्धि, अपस्किलिंग, नौकरी में आरक्षण और मातृत्व के बाद काम पर आने का आसान विकल्प देना शामिल हैं।
न्यूनतम मजदूरी के विपरीत “निर्वाह मजदूरी” को लागू करने की सिफारिश की गयी है, विशेष रूप से सभी अनौपचारिक श्रमिकों के लिए और जितना संभव हो संविदात्मक, अस्थायी और आकस्मिक श्रम को औपचारिक रूप देना चाहिए।