पशुओं की एंटीबायोटिक दवाएं मिट्टी में कार्बन को कम करती हैं और जलवायु को प्रभावित करती हैं- IISc अध्ययन
इंडिया साइंस वायर
मिट्टी को कार्बन अवशोषित करने वाला एक विश्वसनीय सिंक माना जाता है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण है। बड़े स्तनधारी जंतुओं द्वारा चरने से घास के मैदानों की मिट्टी में कार्बन का भंडारण होता है। लेकिन, दुनियाभर में, जंगली शाकाहारी जंतुओं का स्थान धीरे-धीरे पालतू पशु ले रहे हैं। हिमालय के स्पीति क्षेत्र में, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) के सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज के शोधकर्ताओं ने पाया है कि शाकाहारी वन्यजीवों द्वारा घास के मैदानों में चराई की तुलना में पालतू पशुओं द्वारा चरने से मिट्टी में कार्बन का भंडारण कम होता है। पशुओं की टेट्रासाइक्लिन जैसी एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को इसके लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है।
गोबर और पशुओं के मलमूत्र के माध्यम से एंटीबायोटिक दवा अवशेष मिट्टी में पहुँचकर मृदा में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीव समुदाय को रूपांतरित कर देते हैं, जो कार्बन पृथक्करण प्रक्रिया लिए हानिकारक है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसे क्षेत्रों में, क्षतिग्रस्त पारिस्थितिक तंत्र में सुधार और मिट्टी की ‘रिवाइल्डिंग’ एंटीबायोटिक दवाओं के कारण नष्ट हुए लाभकारी रोगाणुओं को बहाल कर सकती है। इसके साथ-साथ, जिन मवेशियों को एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं, उन्हें तब तक एकांत में रखना आवश्यक है, जब तक कि उनके जैविक तंत्र से दवाएं बाहर न निकल जाएं।
सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज, आईआईएससी में एसोसिएट प्रोफेसर; और शोध पत्रिका ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित इस अध्ययन के शोधकर्ता सुमंत बागची कहते हैं, “पशुधन पृथ्वी पर आज सबसे प्रचुर मात्रा में पाये जाने बड़े स्तनधारी हैं। यदि पशुधन क्षेत्रों की मिट्टी में संग्रहीत कार्बन को थोड़ी मात्रा में भी बढ़ाया जा सके, तो इसका जलवायु शमन पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।”
पिछले अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने दिखाया था कि कैसे एक ही क्षेत्र में मिट्टी में कार्बन पूल को स्थिर करने में शाकाहारी जंतुओं की चराई एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वर्तमान अध्ययन में, उन्होंने पता लगाने का प्रयास किया है कि भेड़ और अन्य मवेशी कैसे अपने वन्य संबंधियों जैसे – याक और आइबेक्स की तुलना में मिट्टी के कार्बन स्टॉक को प्रभावित करते हैं।
शोधकर्ताओं ने क्रमशः जंगली शाकाहारी जीवों और पालतू मवेशियों द्वारा चराई वाले क्षेत्रों में 16 वर्षों से अधिक समय तक मिट्टी का अध्ययन किया, और सूक्ष्मजीव संरचना, मिट्टी के एंजाइम, कार्बन स्टॉक और पशु चिकित्सा में उपयोग होने वाली एंटीबायोटिक दवाओं की मात्रा सहित विभिन्न मापदंडों का विश्लेषण किया है। बागची बताते हैं, “यह पहल हिमालय में पारिस्थितिक तंत्र के कार्यों और जलवायु परिवर्तन पर एक दीर्घकालिक अध्ययन का हिस्सा है, जिसे 2005 में शुरू किया गया था।”
वन्यजीव और पशुधन क्षेत्रों की मिट्टी में कई समानताएँ पायी जाती हैं। इसके बावजूद, कार्बन उपयोग दक्षता के मामले में इनमें भिन्नता होती है, जो मिट्टी में कार्बन संग्रहीत करने के लिए रोगाणुओं की क्षमता निर्धारण में महत्वपूर्ण है। आईआईएससी के वक्तव्य में बताया गया है कि कार्बन उपयोग दक्षता पशुधन क्षेत्रों की मिट्टी में 19% कम पायी गई है।
शोधकर्ताओं ने पाया है कि पशुधन वाले क्षेत्रों में मिट्टी की सूक्ष्मजीव संरचना वन्यक्षेत्रों की मिट्टी में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीवों की संरचना से अलग थी। पशुधन क्षेत्रों की मिट्टी में उच्च एंटीबायोटिक अवशेष भी पाए गए हैं। दिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज, आईआईएससी के पीएचडी छात्र और अध्ययन के लेखक दिलीप नायडू कहते हैं, “इससे पता चलता है कि मानव भूमि उपयोग, एंटीबायोटिक्स, सूक्ष्मजीव, मिट्टी और जलवायु परिवर्तन कैसे गहराई से जुड़े हुए हैं।”
बागची कहते हैं, “यह दिलचस्प है कि स्पीति जैसे पारिस्थितिक तंत्र में एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग काफी कम है। उन क्षेत्रों में स्थिति और भी खराब हो सकती है जहाँ पशुपालन बड़े पैमाने पर होता है, और जहाँ बीमार न होने पर भी पशुओं को एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं। यह पर्यावरण के लिए हानिकारक है, क्योंकि टेट्रासाइक्लिन जैसे एंटीबायोटिक्स दशकों तक मिट्टी में बने रह सकते हैं।”
आईआईएससी के पूर्व पीएचडी छात्र और इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता शमीक रॉय कहते हैं, “एंटीबायोटिक दवाओं के अनियंत्रित उपयोग से न केवल जलवायु को खतरा बढ़ा है, बल्कि रोगजनकों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के विकास का जोखिम भी बढ़ रहा है, जो मनुष्यों और जानवरों में जटिल संक्रमण पैदा कर सकता है।”
रॉय कहते हैं, “हम अभी तक इस पूरे तंत्र के विवरण को पूर्णतः समझ नहीं पाए हैं कि मिट्टी में रहने वाले सूक्ष्मजीव एंटीबायोटिक्स के प्रति कैसे प्रतिक्रिया देते हैं, और क्या उन्हें आसानी से बहाल किया जा सकता है!” भविष्य के अध्ययनों में, शोधकर्ता यह पता लगाने की योजना बना रहे हैं कि कैसे पशुधन का बेहतर प्रबंधन सूक्ष्मजीवों बहाली के साथ-साथ पर्यावरण पर उनके नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकता है। (इंडिया साइंस वायर)