भूजल निकासी दिशा-निर्देश और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने कहा है कि जल शक्ति मंत्रालय द्वारा देश में भूजल निकासी को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए जारी दिशा-निर्देश पुरानी योजना को मामूली बदलाव, परिवर्तन और संशोधन के साथ प्रदान किया गया एक नया कवर है।

  • एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वर्ष 2020 के दिशा-निर्देश मोटे तौर पर उसके द्वारा बार-बार और लगातार दिए गए निर्देशों के अनुकूल नहीं है।

भूजल उपयोग पर दिशानिर्देश

  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा 2018 में अधिसूचित नियमों के एक सेट के बाद वर्ष 2020 में, केंद्र ने भूजल उपयोग पर नए दिशानिर्देशों को अधिसूचित किया था जिनमें बिना अनुमति के भूजल निकासी के लिए दंड और अन्य अपराधों के लिए दंड निर्धारित किया था।
  • जल शक्ति मंत्रालय के तहत केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (CGWA) द्वारा अधिसूचित दिशा-निर्देशों में औद्योगिक, खनन और बुनियादी ढांचे के उपयोगकर्ताओं को बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) के भूजल निकालने के लिए न्यूनतम 1 लाख रुपये का पर्यावरणीय मुआवजा निर्धारित किया गया है। निकाले गए पानी की मात्रा के आधार पर मुआवजा बढ़ सकता है।
  • यह अधिसूचना घरेलू उपभोक्ताओं, ग्रामीण पेयजल योजनाओं, सशस्त्र बलों, किसानों और सूक्ष्म और लघु उद्यमों को केंद्रीय भूजल प्राधिकरण से अनापत्ति प्रमाण पत्र की आवश्यकता से छूट देती है।

भारत में भूजल की स्थिति

  • विश्व भर में भारत का वार्षिक भूजल दोहन सबसे अधिक लगभग 250 घन किमी है। वर्तमान में एक्वीफर्स 85 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी घरेलू मांग को पूरा करते हैं और इसके माध्यम से 64 प्रतिशत भूमि की सिंचाई होती है।
  • केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा 2019 में प्रकाशित अनुमानों के अनुसार 6,881 असेसमेंट यूनिट (ब्लॉक, तालुका और वाटरशेड क्षेत्र) में से 17 प्रतिशत का अत्यधिक दोहन हो चुका है। अन्य 5 प्रतिशत अति-दोहन की कगार पर हैं और 14 प्रतिशत संवेदनशील हैं। सिंचाई के लिए 2.2 करोड़ कुओं के माध्यम से एक्वीफर्स का दोहन किया जाता है।
  • सिंचाई में भूजल का 90 प्रतिशत इस्तेमाल होता है। 
  • पंजाब और हरियाणा भूजल का अत्यधिक दोहन करने वाले राज्य हैं। पानी की अधिक खपत वाली धान की फसल (बासमती) इस क्षेत्र को दुनिया के सबसे अधिक भूजल दोहन और भूजल कमी वाली क्षेत्रों में से एक बना रही हैं। इसी तरह महाराष्ट्र में किसान अतिदोहन वाले इलाकों में भी गन्ना जैसी अत्यधिक पानी की खपत वाली फसल उगाते हैं।

हाई रिज़ॉल्यूशन एक्वीफर मैपिंग एंड मनेजमेंट

  •  उत्तर पश्चिमी भारत में ये शुष्क क्षेत्र राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब राज्यों के कुछ हिस्सों में फैले हुए हैं और यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 12% है जिसमे 8 करोड़ से अधिक लोग रहते है। 100 से 400 मिमी की कम वार्षिक वर्षा वाला यह क्षेत्र पूरे वर्ष पानी की भारी कमी का सामना करता है और इसीलिए इस क्षेत्र में भूजल संसाधनों को बढ़ाने के लिए उच्च- कोटि के जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन (हाई रिज़ॉल्यूशन एक्वीफर मैपिंग एंड मनेजमेंट) करना प्रस्तावित किया गया है।

हेली-जनित (बोर्न)

  • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय भू-भौतिकी अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-एनजीआरआई) हैदराबाद द्वारा भूजल प्रबंधन के लिए विकसित अत्याधुनिक हेली-जनित (बोर्न) सर्वेक्षण तकनीक का शुभारंभ किया गया है।
  • हेली जनित भूभौतिकीय मानचित्रण तकनीक जमीन के नीचे 500 मीटर की गहराई तक उप-सतह की हाई रेसोल्यूशन 3डी छवि प्रदान करती है।    

अटल जल योजना

  • अटल जल की रूपरेखा सहभागी भूजल प्रबंधन के लिए संस्थागत संरचना को सुदृढ़ करने तथा सात राज्यों अर्थात गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में टिकाऊ भूजल संसाधन प्रबंधन के लिए समुदाय स्तर पर व्यवहारगत बदलाव लाने के मुख्य उद्देश्य के साथ बनाई गई है। इस योजना के कार्यान्वयन से इन राज्यों के 78 जिलों
  • अटल जल योजना में एक प्रावधान किया गया है, जिसमें बेहतर प्रदर्शन करने वाली ग्राम पंचायतों को अधिक आवंटन दिया जाएगा। 

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