पुरातन चट्टानों के झरोखे से पृथ्वी के अतीत में झाँकने की कोशिश
इंडिया साइंस वायर
लगभग दो अरब साल पहले जब हमारे ग्रह का वातावरण ऑक्सीजन से युक्त हो रहा था, तो उस समय पृथ्वी कैसी दिखती थी? इस प्रश्न का उत्तर खोजने के क्रम में बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के वैज्ञानिकों ने आंध्र प्रदेश के कडपा जिले के वेम्पल्ले में प्राचीन डोलोमाइट (कार्बोनेट) अवशेषों का अध्ययन किया है, जिसमें कई रोचक तथ्य सामने आये हैं।
पृथ्वी हमेशा जीवन के लिए इतनी अनुकूल नहीं रही है। यह चरम जलवायु स्थितियों के विभिन्न चरणों से गुज़री है, जिसमें ऐसे कालखंड भी शामिल हैं जब कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर हमारे पड़ोसी ग्रह शुक्र की तरह जीवित प्राणियों के लिए अत्यधिक विषैला था। हालाँकि, पैलियोप्रोटेरोज़ोइक युग के जीवाश्मों के विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि इन कठोर परिस्थितियों में भी कुछ जीवन मौजूद हो सकते हैं।
अमेरिका के टेनेसी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर किए गए अध्ययन में आईआईएससी के वैज्ञानिकों ने एक उथले अंतर्देशीय समुद्र की संरचना और तापमान का अनुमान लगाया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन में मिले तथ्य संभावित रूप से पैलियोप्रोटेरोज़ोइक युग से संबंधित हो सकते हैं।
इस अध्ययन से पता चला है कि उस समय की परिस्थितियों ने प्रकाश संश्लेषक शैवाल के उद्भव और विकास के लिए कैसे उपयुक्त वातावरण प्रदान किया। इससे यह भी पता चलता है कि प्राचीन चट्टानों के अंदर हमारे ग्रह के अतीत के बारे में कितना डेटा छिपा हुआ है।
सेंटर फॉर अर्थ साइंस (सीईएएस), आईआईएससी के प्रोफेसर और केमिकल जियोलॉजी में प्रकाशित इस अध्ययन के शोधकर्ता प्रोसेनजीत घोष बताते हैं – “हमारे ग्रह की कहानी चट्टानों के विभिन्न स्तरों में छिपी हुई है।” सीईएएस के एक पूर्व पीएचडी छात्र और इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में शामिल योगराज बनर्जी कहते हैं कि समुद्र ने वातावरण में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित किया और उन्हें कार्बोनेट के रूप में डोलोमाइट्स में संचित कर दिया।
पृथ्वी और ग्रह विज्ञान विभाग, टेनेसी विश्वविद्यालय के अनुसंधान प्रोफेसर और अध्ययन के एक अन्य शोधकर्ता रॉबर्ट राइडिंग बताते हैं – “डोलोमाइट समुद्री जल का सीधा अवक्षेप है। यह न केवल समुद्री जल रसायन विज्ञान, बल्कि समुद्री जल के तापमान का भी संकेत देता है।”
समुद्री जल के साथ सूक्ष्मजीवों के संपर्क में आने से बनने वाली कठोर चट्टानों (चर्ट) और उनके नीचे पाये जाने वाले डोलोमिटिक कीचड़ से शोधकर्ताओं ने डोलोमाइट के नमूने एकत्र किए हैं। नमूनों का विश्लेषण प्रयोगशाला में अत्याधुनिक तकनीक क्लम्प्ड आइसोटोप थर्मोमेट्री की मदद से किया गया है। यह तकनीक कार्बन और ऑक्सीजन बांड की व्यवस्था को देखकर तापमान और जमाव संरचना को समझने में वैज्ञानिकों की मदद करती है।
दो साल के गहन विश्लेषण के बाद डोलोमिटिक मिट्टी से यह पता लगा है कि इसके मूल कालखंड के दौरान समुद्री जल का तापमान लगभग 20 डिग्री सेल्सियस था। यह पिछले अध्ययनों के विपरीत है, जिसमें लगभग इसी अवधि के केवल चर्ट के नमूनों का विश्लेषण किया गया था, और उस कालखंड में तापमान करीब 50 डिग्री सेल्सियस होने का अनुमान लगाया गया था। वर्तमान अध्ययन से कम तापमान का अनुमान इस सिद्धांत का अधिक निकटता से समर्थन करता है कि अतीत के उस कालखंड में जीवन-रूपों का समर्थन करने के लिए आदर्श परिस्थितियाँ मौजूद थीं।
पैलियोप्रोटेरोज़ोइक युग के दौरान, मौजूद पानी के प्रकार को पहले केवल भारी जल माना जाता था, जिसमें आइसोटोप या हाइड्रोजन के रूपों का एक विशिष्ट सेट होता है। हालाँकि, वर्तमान अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि हल्का जल, जो आज भी पाया जाता है – उस समय भी मौजूद था।
समुद्री जल का कम तापमान और हल्के जल की उपस्थिति – इस बात का दृढ़ता से समर्थन करते हैं कि लगभग दो अरब साल पहले की स्थिति प्रकाश संश्लेषक शैवाल के उभरने के लिए बिल्कुल सही थी। इन शैवालों की भूमिका मुख्य रूप से वातावरण में ऑक्सीजन प्रवाहित करने की रही है, जिससे अन्य जीवों के विकास और ग्रह को आबाद करने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
शोधकर्ता अब पैलियोप्रोटेरोज़ोइक युग के बारे में अतिरिक्त जानकारी इकट्ठा करने के लिए दुनियाभर के अन्य स्थानों में इसी तरह के चूना-मिट्टी के भंडार की खोज करने की योजना बना रहे हैं। (इंडिया साइंस वायर)