कृषि-पर्यटन (agri-tourism)-एक गैर-शहरी आतिथ्य उत्पाद

कृषि-पर्यटन (agri-tourism) एक गैर-शहरी आतिथ्य उत्पाद है, जो प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के साथ कृषि जीवन शैली, संस्कृति और विरासत की ओर पर्यटकों को आकर्षित करता है।

वर्ष 1985 में इटली द्वारा कृषि-पर्यटन को आधिकारिक तौर पर शुरू किया गया और मान्यता दी गई, जब देश की संसद और सीनेट ने कृषि-पर्यटन के लिए राष्ट्रीय कानूनी ढांचा पारित किया था।

कृषि-पर्यटन की मूल अवधारणा वास्तव में कृषि को उद्यमशीलता का विविध रूप (entrepreneurial diversification) प्रदान करना था। इसे बाद में ‘कृषि-पर्यटन के विनियम’ में संशोधित किया गया, जिसने कृषि-पर्यटन की अवधारणा का निजीकरण और विस्तार किया।

कृषि-पर्यटन को कुछ देशों में राष्ट्रीय के बजाय क्षेत्रीय स्तर पर नियंत्रित किया जाता है, जैसे कि स्पेन में। यह पर्यटन प्रबंधन में क्षेत्रीय स्वायत्त समुदायों की विशेषज्ञता के कारण है।

अमेरिका में कई राज्यों ने कृषि-पर्यटन कानून पारित किए हैं, जो घायल पर्यटकों के मुकदमों से स्थानीय लोगों का बचाव करते हैं।

भारत में कृषि-पर्यटन से राजस्व 20 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रहा है।

महाराष्ट्र कृषि-पर्यटन नीति तैयार करने वाला पहला राज्य है। इस नीति का उद्देश्य ग्रामीण विकास है। नीति यह नियंत्रित करती है कि कौन कृषि-पर्यटन में संलग्न हो सकता है और ऋण और कर लाभों के लिए कैसे आवेदन कर सकता है। यह नीति यह भी निर्देश देती है कि पंजीकरण की मंजूरी के लिए कृषि-पर्यटन केंद्रों की कुछ बुनियादी आवश्यकताएं होनी चाहिए।

वर्ष 2018-20 में, 17.9 लाख पर्यटकों ने राज्य के इन कृषि-पर्यटन केंद्रों का दौरा किया, जिससे किसानों को 55.79 करोड़ रूपये कमाने में मदद मिली। इसने ग्रामीण महिलाओं और युवाओं के लिए एक लाख रोजगार सृजित किए।

कर्नाटक की कृषि-पर्यटन नीति राज्य में कृषि-पर्यटन के विकास के लिए दो प्रमुख चुनौतियों – जागरूकता और क्षमता निर्माण – को संबोधित करती है। यह नीति विभिन्न विभागों और संस्थानों से सहयोगात्मक समर्थन भी मांगती है। नीति के अनुसार, कृषि-पर्यटन परियोजनाएं प्रोत्साहन, सब्सिडी और रियायतों के लिए पात्र हैं।

केरल ने अपनी ओर से, कृषि गतिविधियों को पर्यटन से जोड़कर, कृषक समुदाय को मौद्रिक लाभ की गारंटी देने के लिए केरल कृषि-पर्यटन नेटवर्क (he Kerala Agri-tourism Network) स्थापित करने का निर्णय लिया है।

किसानों की आय दोगुनी करने संबंधी समिति (Doubling of Farmers’ Income) की रिपोर्ट ने कृषि-पर्यटन के विकास के लिए एक नीति की आवश्यकता पर बल दिया है।

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