कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (CCUS) पॉलिसी फ्रेमवर्क एंड इट्स डिप्लॉयमेंट मैकेनिज्म इन इंडिया रिपोर्ट

Image: IPCC

नीति आयोग ने 29 नवंबर 2022 को द्वारा ‘कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (CCUS) पॉलिसी फ्रेमवर्क एंड इट्स डिप्लॉयमेंट मैकेनिज्म इन इंडिया’ शीर्षक से एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में उत्सर्जन में कमी की रणनीति के रूप में कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन और स्टोरेज के महत्व की पड़ताल की गई है।

क्या है कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (CCUS)?

  • CCUS के तहत उत्सर्जन स्रोतों से तकनीकों के इस्तेमाल के जरिये CO2 को कैप्चर किया जाता है। उत्सर्जन स्रोतों में बिजली उत्पादन या औद्योगिक केंद्र शामिल हैं जो ईंधन के लिए जीवाश्म ईंधन या बायोमास का उपयोग करती हैं।
  • CO2 को सीधे वातावरण से भी कैप्चर किया जा सकता है। यदि स्रोत बिंदु पर ही कैप्चर किये गए CO2 का उपयोग नहीं किया जा रहा है, तो इसे पाइपलाइन, जहाज, रेल या ट्रक द्वारा कंप्रेस्ड और परिवहन किया जाता है, जहां कई उत्पादों के निर्माण में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
  • उपयोग नहीं होने पर इसे गहन भूगर्भीय संरचनाओं (नष्ट तेल और गैस कुओं या खारे संरचनाओं सहित) में इंजेक्ट किया जाता है जो कैप्चर किये गए CO2 के स्थायी भंडारण के रूप में कार्य करती हैं।

कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (CCUS) के लाभ

  • नीति आयोग की रिपोर्ट हार्ड-टू-एबेट क्षेत्रों (जहां जीवाश्म ईंधनों का उपयोग समाप्त करना मुश्किल है) में गहन डीकार्बोनाइजेशन उद्देश्यों को प्राप्त करने में CCUS की भूमिका तथा विभिन्न क्षेत्रों में आवश्यक व्यापक स्तर के नीतिगत उपायों की रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
  • बता दें कि भारत ने अपने नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशन (NDC) लक्ष्यों को अपडेट किया है। इसके तहत गैर-जीवाश्म आधारित ऊर्जा स्रोतों से अपनी कुल स्थापित क्षमता का 50% प्राप्त करने 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी करने और 2070 तक नेट जीरो प्राप्त करने की दिशा में कदम उठाना शामिल है।
  • इन लक्ष्यों की प्राप्ति में कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (CCUS) हार्ड-टू-एबेट सेक्टर्स (स्टील, सीमेंट, अलौह धातु और रसायन) से डीकार्बोनाइजेशन प्राप्त करने के लिए उत्सर्जन कमी रणनीति के रूप में महत्वपूर्ण हो जाता है।
  • CCUS कोयले की हमारी समृद्ध भंडार का उपयोग जारी रखते हुए स्वच्छ उत्पादों के उत्पादन को सक्षम कर सकता है, आयात को कम कर सकता है और इस प्रकार आत्मनिर्भर भारतीय अर्थव्यवस्था बनाने में मदद कर सकता है।
  • CCUS परियोजनाओं से रोजगार सृजन भी होगा। यह अनुमान है कि 2050 तक लगभग 750 mtpa कार्बन कैप्चर चरणबद्ध तरीके से पूर्णकालिक समतुल्य (एफटीई) आधार पर लगभग 8-10 मिलियन रोजगार के अवसर पैदा कर सकता है।
  • CCUS कैप्चर किये गए CO2 को विभिन्न वैल्यू एडेड उत्पादों जैसे ग्रीन यूरिया, खाद्य और पेय, निर्माण सामग्री (कंक्रीट और एग्रीगेट्स), रसायन (मेथनॉल और इथेनॉल), पॉलिमर (जैव-प्लास्टिक सहित) में परिवर्तित करने के लिए व्यापक अवसर प्रदान कर सकता है।
  • इस प्रकार एक सर्कुलर इकॉनमी में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
  • CCUS भारत में सतत विकास और संवृद्धि सुनिश्चित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से स्वच्छ उत्पादों और ग्रीन एनर्जी के उत्पादन के लिए, जो एक आत्मनिर्भर भारत की ओर ले जाता है।
  • नीति आयोग ने सुझाव दिया है कि टैक्स और कैश क्रेडिट के माध्यम से भारत में CCUS क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कार्बन क्रेडिट या प्रोत्साहन आधारित नीति बनाई जानी चाहिए।

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