बड़ी संख्या वाली बेंच का बहुमत वाला फैसला कम संख्या वाली बेंच के फैसले पर प्रभावी होगा: सर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने 19 सितंबर को फैसला दिया कि बड़ी संख्या वाली बेंच का बहुमत वाला फैसला कम संख्या वाली बेंच के फैसले पर प्रभावी होगा, भले ही बहुमत वाले जजों की संख्या कितनी भी हो।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी द्वारा लिखे गए प्रमुख निर्णय में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 145(5) के तहत, सुनवाई में अधिकांश न्यायाधीशों की सहमति को अदालत का निर्णय या राय माना जाएगा।
न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों की सर्वाधिक संख्या वाली पीठ द्वारा दिया गया निर्णय कम या समान संख्या वाली बाद की किसी भी बेंच पर बाध्यकारी होगी।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने वर्ष 2021 में पांच-न्यायाधीशों की बेंच द्वारा दिए गए उस निर्णय को आधार बनाया जिसमें कहा गया था कि पीठ में न्यायाधीशों की संख्या मायने रखती है न कि कितने न्यायाधीश बहुमत के निर्णय के पक्ष में थे।
2021 के फैसले में कहा गया है कि एक बड़ी बेंच के फैसले की मिसाल रूपी वैधता (precedential legitimacy) को कानून में स्थिरता के लिए एक मानक नियम माना जाना चाहिए।
2021 के फैसले से प्रेरणा लेते हुए, 19 सितंबर, 2022 को सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने निर्णय दिया कि एक बेंच में न्यायाधीशों की कुल संख्या, पूर्व के मिसाल (precedent) के सिद्धांत का मार्गदर्शन करेगी, भले ही न्यायाधीशों की कम संख्या वाली बेंच में बहुमत से निर्णय देने वाले न्यायाधीशों की संख्या बड़ी बेंच के बहुमत निर्णय देने वाली न्यायाधीशों की संख्या से अधिक हो।
अनुच्छेद 145(5) में कहा गया है कि मामले की सुनवाई में उपस्थित अधिकांश न्यायाधीशों की सहमति के बिना सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कोई निर्णय नहीं दिया जाएगा, लेकिन इस खंड में कुछ भी न्यायाधीश को असहमतिपूर्ण निर्णय देने से नहीं रोकेगा।
सर्वोच्च न्यायालय के मौजूदा निर्णय का मतलब यह हुआ कि पांच न्यायाधीशों की पीठ में यदि तीन न्यायाधीश यदि एक मत हैं तो वह निर्णय माना जायेगा भले ही दो न्यायाधीशों की राय अलग हो। यदि बाद में चार न्यायाधीशों के पीठ के सभी न्यायाधीश किसी निर्णय पर एक मत से निर्णय दे तब भी पांच न्यायाधीशों की पीठ का निर्णय ही बाध्य होगा, भले ही केवल तीन न्यायाधीश बहुमत निर्णय में शामिल हों।