लिटिल आइस एज (LIA)
लिटिल आइस एज (LIA) 1671-1942 के बीच एक वैश्विक जलवायु परिघटना थी। अब इस पर एक नया अध्ययन प्रकाशित हुआ है, जो उस युग के दौरान वर्षा के पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव दिखाता है।
नया अध्ययन उस अवधि के दौरान कम मानसूनी वर्षा के साथ एक सामान ठंडी और शुष्क जलवायु की पारंपरिक धारणा को चुनौती देता है।
बता दें कि पश्चिमी घाट में जून से सितंबर के दौरान दक्षिण पश्चिम ग्रीष्मकालीन मानसून (SWM) और अक्टूबर से दिसंबर के दौरान उत्तर-पूर्वी शीतकालीन मानसून (NEM), दोनों से वर्षा होती है। ऐसे क्षेत्र से वनस्पति की गतिशीलता और संबंधित हाइड्रो-क्लाइमेट परिवर्तनशीलता को समझना, जो SWM और NEM दोनों से प्रभावित था, पिछली सहस्राब्दी के दौरान मानसूनी परिवर्तनशीलता को समझने में महत्वपूर्ण हो सकता है।
वैज्ञानिकों ने कर्नाटक में होन्नामनाकेरे झील (Honnamanakere Lake) से मुख्य तलछट के नमूने खोजे और भारत के पश्चिमी घाट से 1219-1942 ई. के दौरान वनस्पति-आधारित जलवायु परिवर्तन और मानसूनी परिवर्तनशीलता के पुनर्निर्माण के लिए उनमें जमा पराग का विश्लेषण किया।
कैटेना पत्रिका में प्रकाशित उनके अध्ययन से पता चला है कि पश्चिमी घाट से लिटिल आइस एज (LIA) के दौरान आद्र जलवायु के साक्ष्य का रिकॉर्ड प्राप्त होना, संभवतः उत्तर-पूर्वी शीतकालीन मानसून में वृद्धि के कारण था। इसके अलावा, आद्र (नम) लिटिल आइस एज, हाइड्रो-क्लाइमेट विरोधाभास को दर्शाता है।