मौद्रिक नीति कार्रवाइयों की फ्रंटलोडिंग
16 सितंबर, 2022 को भारतीय रिजर्व बैंक के एक आलेख में मध्यम अवधि के आर्थिक विकास की संभावनाओं का त्याग किए बिना मुद्रास्फीति के दबाव को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी जैसी मौद्रिक नीति कार्रवाइयों में फ्रंट लोडिंग (frontloading of monetary policy actions) का समर्थन किया गया है।
इसका मतलब यह है कि मुद्रास्फीति पर नियंत्रण में देरी के बजाय ब्याज दर बढ़ाकर मौद्रिक नीति कार्रवाई को पहले किए जाने से महंगाई दबाव पर काबू पाया जा सकता है। इससे मुद्रास्फीति के लक्ष्य के साथ तालमेल बैठाया जा सकता है।
हालांकि, RBI ने बाद में स्पष्ट किया आर्टिकल में व्यक्त की गई राय लेखकों के खुद हैं और ये राय भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
RBI के डिप्टी गवर्नर माइकल देवव्रत पात्रा के नेतृत्व वाली टीम द्वारा लिखी गयी आर्टिकल में कहा गया है कि वैश्विक आर्थिक गतिविधियों की गति मंद पड़ने से मुद्रास्फीति पर से ध्यान हटा सकता है, जो अभी भी ऊंचा बना हुआ है।
पात्रा के अनुसार, बार-बार प्रतिकूल आपूर्ति झटकों (supply side shocks) के प्रति मौद्रिक नीति के रिस्पांस में देरी से विश्वसनीयता का और नुकसान हो रहा है।
आलेख के मुताबिक मौद्रिक नीति की कार्रवाइयों की फ्रंट लोडिंग से मुद्रास्फीति की उम्मीदों को मजबूती से रखा जा सकता है, मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अनुरूप किया जा सकता है और मध्यम अवधि के विकास को बलि देने से भी बचा जा सकता है क्योंकि अर्थव्यवस्था अभी भी रिकवरी के फेज में है।
फ्रंट-लोडिंग ब्याज दरों में बढ़ोतरी से घर और कारों से लेकर व्यावसायिक ऋणों तक हर चीज के लिए तेजी से ब्याज दर बढ़ सकती है। यह बदले में आर्थिक सुधार को रोक सकता है।