पुनर्योजी कृषि (Regenerative agriculture) क्या है?
पुनर्योजी कृषि (Regenerative agriculture) खेती की ऐसी पद्धति है जो मृदा के स्वास्थ्य पर केंद्रित होती है।
पुनर्योजी कृषि की आवश्यकता क्यों है?
खाद्य उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारी मशीनरी, उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग की वजह से कृषि आज मिट्टी के क्षरण और नुकसान में योगदान दे रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार 50 वर्षों के भीतर, दुनिया को खिलाने के लिए पर्याप्त उपजाऊ मिट्टी नहीं बचेगी।
सघन खेती मिट्टी में प्राकृतिक रूप से जमा CO2 को बाहर निकालती है और इसे वातावरण में छोड़ती है। यह ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कृषि का योगदान एक तिहाई से अधिक है।
डेग्रेडेड मिट्टी और अपरदित भूमि बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाओं को आमंत्रण दे रही है और पृथ्वी के गर्म होने के साथ-साथ इसकी फ्रीक्वेंसी और इंटेंसिटी भी बढ़ रही हैं।
पुनर्योजी कृषि में क्या शामिल हैं?
पुनर्योजी खेती के तरीकों में भूमि की कम जुताई की जाती है। इससे मिट्टी में CO2 बना रहता है, इसकी जल अवशोषण क्षमता में सुधार करता है और जमीन की भीतर गड़े लाभकारी कवकों को नुकसान नहीं पहुंचाता है।
फसलों को बदल-बदलकर रोपने से (Rotating crops) जैव विविधता में सुधार होता है।
पशु खाद और कम्पोस्ट का उपयोग करने से पोषक तत्वों को मिट्टी में वापस लाने में मदद मिलती है।
एक रिपोर्ट के अनुसार ज़मीन के एक ही खंड पर जानवरों को लगातार चराने से भी मृदा क्षरण हो सकती है। इसलिए पुनर्योजी कृषि विधियों में चरने वाले पशुओं को अलग-अलग चरागाहों में ले जाना शामिल है।
पुनर्योजी कृषि के क्या लाभ हैं?
पुनर्योजी खेती मृदा स्वास्थ्य और जल धारण क्षमता में सुधार के साथ-साथ मिट्टी के कटाव को कम करके फसल की पैदावार में सुधार कर सकती है।
पुनर्योजी खेती कृषि से उत्सर्जन को कम कर सकती है।