न्यूरेम्बर्ग के हैंस मुलर बनाम प्रेसीडेंसी जेल अधीक्षक मामला
केंद्र सरकार चाहती है कि वीजा शर्तों का उल्लंघन करने वाले विदेशियों के अधिकारों के दीर्घकालिक प्रभावों को देखते हुए कानून को बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट उसकी मदद करे।
- सरकार का तर्क है कि वीजा जारी करना एक “संप्रभु कार्य” (sovereign function) है। इस तरह वीजा शर्तों को तोड़ने वाले विदेशियों को अदालत में कोई रहत मिलनी चाहिए।
- केंद्र ने संकेत दिया है कि वह ऐसा कानून चाहता है जो इस तरह का प्रावधान करे और अदालत भी उसका समर्थन करे।
- न्यूरेम्बर्ग के हैंस मुलर बनाम प्रेसीडेंसी जेल अधीक्षक कलकत्ता मामले (Hans Muller of Nuremberg v Superintendent, Presidency Jail, Calcutta) में एक संविधान पीठ का 67 साल पुराना फैसला भारत में विदेशियों के अधिकारों से संबंधित मामलों में सर्वोच्च न्यायालय की एक बहुत ही अच्छी मिसाल है।
- शीर्ष अदालत ने इस फैसले में कहा था कि विदेशियों को निष्कासित करने के लिए केंद्र के पास “पूर्ण और निरंकुश अधिकार” (absolute and unfettered right) है। लेकिन इसमें यह भी कहा गया है कि विदेशी नागरिकों को “कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा” उन्हें उनके जीवन या स्वतंत्रता से वंचित नहीं करने का मूल अधिकार भी शामिल है।
- इस निर्णय ने देश से निष्कासन से पहले एक विदेशी नागरिक को हिरासत में लिए जाने की संभावना को भी ध्यान में रखा।
- उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 21 नागरिकों और विदेशियों, दोनों को समान रूप से व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा की गारंटी देता है।
- वर्ष 1955 में पांच-न्यायाधीशों की बेंच ने कहा कि ‘कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार’ किसी भी व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है।
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