क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (QIP)

बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Sebi) क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (qualified institutional placement: QIP) रूट से फंड जुटाने वाली कंपनियों के लिए अधिक विस्तृत डिस्क्लोजर आवश्यकताओं पर विचार कर रहा है।

एक क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (QIP) शुरू में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा दिए गए सिक्योरिटीज इशू का एक पदनाम था।

दरअसल QIP स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड भारतीय- कंपनी को बाजार नियामकों को कोई इशू फाइलिंग करने की आवश्यकता के बिना घरेलू बाजारों से पूंजी जुटाने की अनुमति देता है।

सेबी ऐसी कंपनियों को केवल सिक्युरिटीज जारी करके धन जुटाने तक सीमित करता है। सेबी ने 8 मई, 2006 को भारतीय वित्त पोषण के इस अनूठे मार्ग के लिए दिशा-निर्देश जारी किए। QIP विकसित करने का प्राथमिक कारण भारत को अपने आर्थिक विकास के लिए विदेशी पूंजी पर बहुत अधिक निर्भर रहने से रोकना था।

QIP से पहले, भारतीय नियामकों की ओर से यह चिंता बढ़ रही थी कि इसकी घरेलू कंपनियां पूंजी स्रोत के रूप में अमेरिकी डिपॉजिटरी रिसीट्स (ADRs), फॉरेन करेंसी कन्वर्टिबल बॉन्ड्स (FCCBs) और ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट्स (GDR) के जरिए अंतरराष्ट्रीय फंडिंग तक आसानी से पहुंच रही हैं। अधिकारियों ने भारतीय कंपनियों को विदेशी बाजारों में दोहन के बजाय घरेलू स्तर पर धन जुटाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए QIP दिशानिर्देशों का प्रस्ताव रखा।

QIP कुछ कारणों से मददगार होते हैं। QIP जारी करने के रूप में उनके उपयोग से समय की बचत होती है और पूंजी तक पहुंच फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) की तुलना में कहीं अधिक तेज है। स्पीड इसलिए है क्योंकि QIP को बहुत कम कानूनी नियम और विनियम का पालन करना पड़ता है, जो उन्हें अधिक लागत-कुशल बनाते हैं।

इसके अलावा, कम कानूनी शुल्क हैं और विदेशों में सूचीबद्ध होने की कोई कीमत नहीं चुकानी होती है।

IPO और एफपीओ (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफरिंग) के विपरीत, जिसके लिए प्रस्ताव दस्तावेजों में कई डिस्क्लोजर की आवश्यकता होती है, QIP हमेशा कंपनियों के लिए पूंजी जुटाने का एक बहुत ही फ्लेक्सिबल और त्वरित तरीका रहा है।

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