इंडियन ओशन डाइपोल ( Indian Ocean Dipole: IOD)
वर्ष 1999 में, जापान के आइज़ू विश्वविद्यालय के एन एच साजी और अन्य वैज्ञानिकों ने हिंद महासागर में एक ENSO (El Niño-Southern Oscillation: ENSO) जैसी घटना की खोज की, जिसे उन्होंने इंडियन ओशन डाइपोल ( Indian Ocean Dipole: IOD) नाम दिया।
- इंडियन ओशन डाइपोल (IOD) को दो क्षेत्रों (या ध्रुवों, इसलिए एक द्विध्रुवीय) के बीच समुद्र की सतह के तापमान में अंतर से परिभाषित किया जाता है। ये दो क्षेत्र हैं; अरब सागर में एक पश्चिमी ध्रुव (पश्चिमी हिंद महासागर) और इंडोनेशिया के दक्षिण में पूर्वी हिंद महासागर में एक पूर्वी ध्रुव।
- IOD ऑस्ट्रेलिया और हिंद महासागर बेसिन के आसपास के अन्य देशों की जलवायु को प्रभावित करता है, और इस क्षेत्र में वर्षा परिवर्तनशीलता में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है।
- ENSO की तरह, IOD के भी तीन चरण होते हैं- सकारात्मक, नकारात्मक और तटस्थ।
- IOD के सकारात्मक चरण के दौरान, पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में पश्चिमी हिंद महासागर (जो मानसूनी हवाओं को बढ़ावा देता है) में समुद्र की सतह का तापमान गर्म होता है – इसलिए एक द्विध्रुवीय प्रकृति है यानी डाइपोल नेचर ।
- IOD नकारात्मक के दौरान विपरीत स्थिति होती है और IOD तटस्थ अवधि के दौरान कोई ताप भिन्नता नहीं देखा जाता है।
- यह देखा गया है कि सकारात्मक इंडियन ओशन डाइपोल की अवधि के दौरान, भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून की वर्षा नकारात्मक इंडियन ओशन डाइपोल अवधि की तुलना में काफी अच्छी होती है।
- 1994 और 2006 अल नीनो वर्ष होने के बावजूद, भारत में सूखा नहीं देखा गया क्योंकि इंडियन ओशन डाइपोल काफी सकारात्मक था। इस प्रकार, कुछ मायनों में IOD का एक मजबूत सकारात्मक चरण अल नीनो के नकारात्मक प्रभावों का मुकाबला करने की कोशिश करता है।
- लेकिन इंडियन ओशन डाइपोल और मानसून वर्षा के बीच संबंध पर अभी भी बहस चल रही है और पूरी तरह से समझा नहीं गया है।
- मैस्करीन हाई, कोरिओलिस फोर्स, भारत के गर्मी के मौसम और ENSO की भूमिकाओं की तुलना में, इंडियन ओशन डाइपोल की भूमिका हाल ही में खोजी गई है।
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