डॉलर मिल्कशेक थ्योरी क्या है?
संयुक्त राज्य अमेरिका का फेडरल रिजर्व बैंक (FED) 2021 और 2022 की शुरुआत के बीच अपने क्वांटिटेटिव ईजिंग कार्यक्रम को शून्य करने के बाद बढ़ती मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए लगातार ब्याज दरों में वृद्धि कर रहा है। FED ने लगातार तीन महीनों में दरों में 75 आधार अंकों की वृद्धि की है।
ब्याज दरों में बढ़ोतरी की वजह से अमेरिकी डॉलर अन्य मुद्राओं और परिसंपत्ति वर्गों के मुकाबले नाटकीय रूप से मजबूत हो गया है।
यही नहीं डॉलर के मजबूत होने से विश्व भर की मुद्राएं, जिनमें भारतीय रुपया भी शामिल है, कमजोर हो गयीं हैं।
दूसरी ओर विश्व भर की इकोनॉमी से लिक्विडिटी यानी निवेश और नकदी फ़ेडरल रिजर्व के पास पहुँचने लगी है क्योंकि वहां ब्याज दर अधिक मिल रही है।
इसका परिणाम है कि वर्ल्ड इकोनॉमी मार्किट में लिक्विडिटी या मनी सप्लाई कम हो गयी है। “डॉलर मिल्कशेक थ्योरी” यही है।
“डॉलर मिल्कशेक थ्योरी” (Dollar Milkshake Theory) सैंटियागो कैपिटल के CEO ब्रेंट जॉनसन द्वारा गढ़ा गया है।
इस सिद्धांत का नाम वास्तव में किसी पड़ोसी की संपत्ति से एक स्ट्रॉ लगाकर “ड्रिलिंग” द्वारा तेल निकालने की अवधारणा से आया हुआ है अर्थात हर जगह से लिक्विडिटी (मनी सप्लाई) सोख लेना।
संयुक्त राज्य अमेरिका के पास डॉलर रूपी जादुई स्ट्रॉ है और नियमित रूप से इसका उपयोग दुनिया भर की पूंजी को समेटने के लिए करता है।
जब मुद्रास्फीति अधिक होती है तब फेडरल रिजर्व के लिए ब्याज दरों को बढ़ाना और मुद्रास्फीति को कम करने के लिए सभी परिसंपत्ति खरीद कार्यक्रमों को समाप्त करना अनिवार्य हो जाता है। तब FED एक स्ट्रॉ के माध्यम से बाजार से लिक्विडिटी को सोखने का पर्याय बन जाता है।
ससे इमर्जिंग इकोनॉमी को तरलता संकट (liquidity crisis) का सामना करना पड़ता है क्योंकि डॉलर बहुत मजबूत हो जाता है।