श्रिंकफ्लेशन (Shrinkflation)
श्रिंकफ्लेशन (Shrinkflation) तब होती है जब किसी उत्पाद की कीमत को बदले बिना पैकेट में उसकी मात्रा को कम कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, एक कंटेनर में आइसक्रीम के स्कूप को कम करना या एक पैकेट में चिप्स की संख्या को कम करना श्रिंकफ्लेशन (Shrinkflation) के रूप में गिना जाएगा।
दूसरे शब्दों में, श्रिंकफ्लेशन (Shrinkflation) तब होती है जब वस्तु का आकार छोटा हो जाता है या उसकी मात्रा कम कर दी जाती है लेकिन उपभोक्ता पहले की वजन वाली ही कीमत चुकाते हैं।
ऐसा तब होता है जब निर्माता वस्तु उत्पादन की लागत की भरपाई के लिए उत्पादों के आकार छोटा कर देते हैं लेकिन रिटेल प्राइस समान रखते हैं।
श्रिंकफ्लेशन की नीति तब अपनायी जाती है जब उत्पाद बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्रियां अधिक महंगी हो जाती हैं और जब बाजार में तीव्र प्रतिस्पर्धा होती है। परिणामस्वरूप, कीमतें बढ़ाने के बजाय, निर्माता आपको कम वस्तु दे सकते हैं ताकि उनके लाभ मार्जिन को बनाए रखा जा सके।
वस्तु के सिकुड़न यानी कम होने से ग्राहकों में निराशा पैदा हो सकती है और उत्पादक के ब्रांड के प्रति उपभोक्ता भावना में गिरावट आ सकती है। यह एक प्रकार से अनैतिक कार्य है।
दूसरी ओर, श्रिंकफ्लेशन की स्थिति में, मूल्य परिवर्तन या मुद्रास्फीति को सटीक रूप से मापना अधिक कठिन होता है क्योंकि कीमत भ्रामक हो जाते हैं। दरअसल मुद्रफीति की माप में कीमत को ध्यान में रखा जाता है वस्तु के आकार या मात्रा की नहीं।
श्रिंकफ्लेशन से निपटने का मतलब मुद्रास्फीति से निपटना है।
भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत सूचना के अधिकार को उपभोक्ता अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। इसका मतलब है कि उपभोक्ता को वस्तुओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक और कीमत जानने का अधिकार है। इसलिए, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण को किसी उत्पाद का वजन कम होने पर उपभोक्ताओं को सूचित करने के लिए कुछ दिशानिर्देश लाने की जरूरत है, न कि उपभोक्ताओं को कंपनियों के बहकावे में आने दें।