वन प्रमाणीकरण (Forest Certification)

वनों और वन-आधारित उत्पादों के सतत प्रबंधन के लिए दो प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मानक हैं, जो व्यापक रूप से स्वीकृत भी हैं। ये मानक फॉरेस्ट स्टीवार्डशिप काउंसिल (FSC) और प्रोग्राम फ़ॉर एंडोर्समेंट ऑफ फ़ॉरेस्ट सर्टिफ़िकेशन (PEFC) द्वारा विकसित किये हैं। FSC प्रमाणीकरण विश्व स्तर पर अधिक लोकप्रिय  है और अधिक महंगा भी है।

FSC या PEFC जैसे संगठन अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) या अंतर्राष्ट्रीय मानक ब्यूरो (BIS) के समान केवल मानकों के विकासकर्ता और स्वामी हैं। वे वन प्रबंधकों या वन-आधारित उत्पादों के निर्माताओं या व्यापारियों द्वारा अपनाई जा रही प्रक्रियाओं के मूल्यांकन और ऑडिटिंग में शामिल नहीं हैं। ये काम FSC या PEFC द्वारा अधिकृत प्रमाणन निकायों का है।

वन प्रमाणन उद्योग भारत में पिछले 15 वर्षों से काम कर रहा है।

वर्तमान में, केवल एक राज्य – उत्तर प्रदेश – में वन प्रमाणित हैं। उत्तर प्रदेश वन निगम (UPFC) के इकतालीस डिवीजन PEFC-प्रमाणित हैं, जिसका अर्थ है कि PEFC द्वारा समर्थित मानकों के अनुसार उनका प्रबंधन किया जा रहा है। इन मानकों को नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी नेटवर्क फॉर सर्टिफिकेशन एंड कंजर्वेशन ऑफ फॉरेस्ट (NCCF) द्वारा विकसित किया गया है।

कुछ अन्य राज्यों ने भी प्रमाणन प्राप्त किया, लेकिन बाद में वे इससे बाहर हो गए। महाराष्ट्र में भामरागढ़ वन प्रभाग, वन प्रबंधन के लिए FSC प्रमाणन प्राप्त करने वाला पहला वन खंड था। बाद में, मध्य प्रदेश में दो डिवीजनों और त्रिपुरा में एक डिवीज़न ने भी FSC प्रमाणन प्राप्त किया। UPFC के पास पहले भी FSC सर्टिफिकेशन था। हालांकि, इन सबका प्रमाणन समय के साथ समाप्त  (लैप्स) हो गया।

केवल उत्तर प्रदेश वन निगम (UPFC)  ने PEFC के साथ अपना प्रमाणन का रिन्यूअल करवाया है।

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