आवश्यकता के सिद्धांत (Doctrine of Necessity)
हाल में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने विलय और अधिग्रहण (एम एंड ए) और निवेश प्रस्तावों से जुड़े छह सौदों को मंजूरी देने के लिए “आवश्यकता के सिद्धांत” (doctrine of necessity) को लागू किया क्योंकि इन सौदों की मंजूरी देने के लिए अपेक्षित तीन सदस्य का कोरम पूरा नहीं हो रहा था।
25 अक्टूबर, 2022 को अध्यक्ष अशोक कुमार गुप्ता के सेवानिवृत्त होने के बाद कोरम की कमी हो गयी थी।
डॉक्ट्रिन ऑफ नेसेसिटी एक न्यायिक सिद्धांत है जो एक न्यायाधीश या एजेंसी के निर्णयकर्ता को किसी मामले का फैसला करने की अनुमति देता है, भले ही वह पूर्वाग्रह के कारण सामान्य रूप से अयोग्य हो या हो या निर्णय लेने के लिए आवश्यक कोरम (न्यूनतम सदस्य) की कमी हो।
इस सिद्धांत का तर्क यह है कि यदि निर्णय लेने वाला कोई अन्य व्यक्ति उपलब्ध नहीं है, तो कोई निर्णय नहीं लेने के बजाय जो शेष व्यक्ति उपलब्ध है उसे को मामले का निर्णय लेने दें। इससे अनिर्णय की स्थिति से बचा जा सकता है।
प्रतिस्पर्धा अधिनियम में कहा गया है कि किसी सौदों को मंजूरी देने के लिए कम से कम तीन सदस्य होने चाहिए, लेकिन कानून मंत्रालय से कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय, को हरी झंडी मिलने के बाद CCI ने दो सदस्यीय कोरम के रूप में निर्णय लिया।
बता दें कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि CCI की कार्रवाई किसी भी तरह से कानून का उल्लंघन नहीं माना जाए, प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 15 में कहा गया है कि आयोग का कोई भी कार्य या कार्यवाही केवल “कोई रिक्ति, या गठन में कोई दोष” के कारण अमान्य नहीं होगी। कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय, CCI का प्रशासनिक मंत्रालय है।