लोन राइट-ऑफ बनाम कर्ज माफी

भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, बैंकों ने पिछले पांच साल में 10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज बट्टे खाते में डाल दिया यानी लोन राइट-ऑफ (Writing off a loan) किया गया है ।

10,09,510 करोड़ रुपये (123.86 बिलियन डॉलर) के लोन राइट-ऑफ में से केवल 13% (1,32,036 करोड़ रुपये) की वसूली हो पेयी है। लोन को राइट ऑफ करने का अनिवार्य रूप से मतलब होता है कि इसे अब बैंक की परिसंपत्ति के रूप में नहीं गिना जाएगा।

लोन राइट-ऑफ के बाद बैंक अपने खातों में गैर-निष्पादित आस्तियों (non-performing assets: NPAs) के स्तर को कम कर सकता है।

इसका एक अतिरिक्त लाभ यह भी है कि लोन राइट-ऑफ राशि बैंक की कर देयता को कम कर देती है।

कर्ज लेने वाले द्वारा लोन डिफॉल्ट (कर्ज नहीं चुकाना) करने के बाद इस कर्ज को राइट-ऑफ कर दिया जाता है क्योंकि इसकी रिकवरी की बहुत कम संभावना होती है।

जब कर्ज राइट-ऑफ कर दिया जाता तब डिफ़ॉल्ट ऋण या NPA को बैंक एसेट्स से बाहर कर दिया जाता है और राशि को नुकसान के रूप में रिपोर्ट किया जाता है।

राइट-ऑफ़ के बाद, बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे विभिन्न विकल्पों का उपयोग करके ऋण की वसूली के अपने प्रयासों को जारी रखें। उन्हें प्रोविज़निंग भी करना होता है।

लाभ में से बट्टे खाते में डाली गई राशि कम होने से कर देनदारी भी कम हो जाती है। भले ही बैड लोन का राइट ऑफ कर दिया जाता है, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं होता कि लोन डिफॉल्ट करने वाला इस चुकाने से बच जाता है। इसे चुकाने का दायित्व बना रहता है और बैंक भी इसे वसुलने के कानूनी कदम उठा सकता है।

ऐसे कई मामले हैं जब लोन राइट-ऑफ कर दिया गया लेकिन बाद में ऋण की वसूली हो गई। हालांकि, कानूनी व्यवस्था के तहत ऐसे लोन की वसूली निरंतर आधार पर होती है।

कर्ज माफी (Loan waiver), कर्ज को बट्टे खाते में डालने (Writing off a loan) से काफी अलग है क्योंकि कर्ज माफी के बाद कर्ज चुकाने का दायित्व समाप्त हो जाता है और कर्ज खाता को बैंक कैंसिल कर देता है। सरल शब्दों में, बैंक ऐसे ऋणों को पूरी तरह से छोड़ देते हैं और कोई वसूली नहीं की जाती।

जबकि लोन राइट-ऑफ के मामलों में लोन की वसूली की जा सकती है।

कर्ज माफ करना एक राहत है जो आम तौर पर उन किसानों को प्रदान की जाती है, जो प्राकृतिक आपदा जैसी असामान्य परिस्थितियों जैसे कि फसल की विफलता, खराब मानसून, बाढ़, भूकंप, सूखा आदि के कारण गंभीर संकट में होते हैं।

ये ऐसी परिस्थितियां हैं, जो नियंत्रण से बाहर होती हैं, और इसके परिणामस्वरूप कर्जदार बैंकों को वापस भुगतान करने में असमर्थ हैं। बहरहाल, किसानों की कर्जमाफी अब वोट बटोरने का एक राजनीतिक कदम बन गई है।

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