प्रवर समिति (Select Committee)
कम से कम चार सांसदों की शिकायत के बाद कि उनका नाम उनकी सहमति के बिना राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक 2023 के लिए प्रस्तावित प्रवर समिति (सेलेक्ट कमिटी/Select Committee) में शामिल किया गया है, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने मामले की जांच की घोषणा की। गौरतलब है कि उच्च सदन राज्यसभा में आम आदमी पार्टी (आप) के एक सांसद ने प्रवर समिति का प्रस्ताव रखा था।
गौरतलब है कि भारत की संसद में कई प्रकार की समितियाँ हैं जो विभिन्न कार्यों का निर्वहन करती हैं। 12 स्थायी समितियाँ हैं जो स्थायी प्रकृति की हैं, और उनके सदस्यों को समय-समय पर अध्यक्ष द्वारा नामित किया जाता है। विशेषाधिकार समिति ऐसी ही एक है।
दूसरी ओर तदर्थ या अस्थायी समितियाँ (ad hoc or temporary committees) होती हैं, जो एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए गठित की जाती हैं, जैसे कि किसी विशेष विधेयक की जाँच करना, और फिर उद्देश्य पूरा हो जाने पर समिति को भंग कर दी जाती हैं।
एक प्रवर समिति (सेलेक्ट कमिटी/Select Committee) तदर्थ या अस्थायी समिति है। राज्यसभा के नियमों और प्रक्रियाओं के नियम 125 के तहत, कोई भी सदस्य यह संशोधन पेश कर सकता है कि किसी विधेयक को प्रवर समिति को भेजा जाए।
विधेयकों पर सेलेक्ट/जॉइंट समितियां संबंधित विधेयक पेश करने वाला प्रभारी मंत्री या किसी सदस्य द्वारा पेश किए गए विशिष्ट प्रस्ताव पर सदन द्वारा गठित की जाती हैं और समय-समय पर संदर्भित विधेयकों पर विचार करने और रिपोर्ट करने के लिए सदन द्वारा अपनाई जाती हैं।
एक संयुक्त समिति (Joint Committee) में लोकसभा और राज्यसभा, दोनों के सदस्य होते हैं। किसी विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का प्रस्ताव या तो विधेयक के प्रभारी सदस्य या किसी अन्य सांसद द्वारा लाया जा सकता है।
यदि कोई सदस्य समिति में शामिल होने के लिए का इच्छुक नहीं है तो उसे प्रवर समिति में नियुक्त नहीं किया जाता है। प्रस्तावक को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके द्वारा प्रस्तावित सदस्य समिति में काम करने के लिए इच्छुक है या नहीं।
प्रवर समिति की सदस्यता की वास्तविक संख्या निश्चित नहीं है; यह समिति दर समिति भिन्न-भिन्न होती है।
यदि यह एक संयुक्त समिति है, तो राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों का अनुपात 1:2 है। समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति राज्य सभा के सभापति द्वारा समिति के सदस्यों में से की जाती है।
समिति की रिपोर्ट अनुशंसात्मक प्रकृति की होती है। अर्थात सरकार इसकी सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।