हक्की पिक्की (Hakki Pikki)
कर्नाटक के हक्की पिक्की आदिवासी समुदाय के 181 से अधिक सदस्य हिंसा प्रभावित सूडान में फंसे हुए हैं। इन्हें वापस लाने की चुनौती है।
हक्की पिक्की (Hakki Pikki) एक जनजातीय समुदाय है जो पश्चिम और दक्षिण भारत के कई राज्यों में प्राप्त होते हैं, खासकर वन क्षेत्रों के पास। हक्की पिक्की (कन्नड़ में हक्की का अर्थ है ‘पक्षी’ और पिक्की का अर्थ है ‘पकड़ने वाले’) एक अर्ध-खानाबदोश जनजाति हैं, जो परंपरागत रूप से पक्षी पकड़ने वाले और शिकारी समुदाय है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक में हक्की पिक्की की आबादी 11,892 है, और वे दावणगेरे, मैसूर, कोलार, हासन और शिवमोगा जिलों में उनकी आबादी अधिक है।
अलग-अलग क्षेत्रों में इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे उत्तरी कर्नाटक और महाराष्ट्र में मेल-शिकारी (Mel-Shikari)। वे चार कुलों में विभाजित हैं, जिन्हें गुजरातिया, पंवार, कालीवाला और मेवाड़ कहा जाता है।
इन कुलों को पारंपरिक हिंदू समाज में जातियों के साथ बराबर किया जा सकता है। जंगल हक्की पिक्की का मुख्य प्राकृतिक संसाधन है।
कर्नाटक में हक्की पिक्की हिंदू परंपराओं का पालन करते हैं और सभी हिंदू त्योहार मनाते हैं। यह जनजाति क्रॉस-कजिन विवाह को प्राथमिकता देती है।
समाज मातृसत्तात्मक है, जहाँ दूल्हा दुल्हन के परिवार को दहेज देता है।
हक्की पिक्की लोग प्राकृतिक घुमंतू लोग हैं और दशकों से अन्य देशों की यात्रा करते रहे हैं – पहले, हस्तशिल्प बेचने के लिए, और अब पारंपरिक हर्बल तेलों और पेड़-पौंधों आधारित दवाओं का उत्पादन और विपणन करने के लिए।
इस जनजाति के सदस्य वाघरी (दक्षिण भारत की एक अवर्गीकृत आदिवासी इंडो-आर्यन भाषा), कन्नड़ और हिंदी बोलते हैं।