एगसेल स्कल कानूनी सिद्धांत
यह रेखांकित करते हुए कि राज्य और केंद्रीय उपभोक्ता अदालतों ने ‘एगसेल स्कल” (eggshell skull) कानूनी सिद्धांत को गलत तरीके से लागू किया, सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल को एक चिकित्सा लापरवाही मामले में जिला उपभोक्ता मंच द्वारा लगाए गए 5 लाख रुपये के मुआवजे को वापस बहाल कर दिया।
‘एगसेल स्कल” का नियम सिविल अभियोजन (civil litigation) में लागू होने वाला एक सामान्य कानून सिद्धांत है। इस सिद्धांत के अनुसार अपराधी उन सभी जख्मों के लिए उत्तरदायी होगा जो घायल व्यक्ति की विशेष या नाजुक स्थितियों या पहले के जख्म के कारण और बढ़ सकती हैं जिनके बारे में अपराधी को पहले से पता नहीं था।
सीधे शब्दों में कहें तो, प्रतिवादी को किसी व्यक्ति के सिर पर चोट लगने से हुए जख्मों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा, भले ही पीड़ित व्यक्ति की खोपड़ी विशेष रूप से नाजुक ही क्यों नहीं हो यानी ‘एगसेल स्कल” या अंडा के छिलके के समान कोमल ‘ हो।
यह नियम मुआवजा बढ़ाने का दावा करने के लिए लागू किया जाता है – उस क्षति के लिए जो प्रतिवादी (defendant) जितना सोच रहा था, उससे कहीं अधिक नुकसान पहुंची हो।
एगसेल स्कल के नियम की उत्पत्ति को अक्सर 1891 में विस्कॉन्सिन, अमेरिका में वोसबर्ग बनाम पुटनी मामले से लगाया जाता है। यह घटना विस्कॉन्सिन के वौकेशा के एक स्कूल में घटित हुई जब एक 12 वर्षीय लड़के, पुटनी ने, 14 वर्षीय लड़के, वोसबर्ग को पिंडली में लात मार दी, बिना यह जाने कि उसे पहले भी उसी जगह पर चोट लगी थी। विस्कॉन्सिन सुप्रीम कोर्ट ने माना कि नया जख्म लात मारने के कारण और बढ़ गई, जिसके कारण “वह (वोसबर्ग का) दिव्यांग (पैर) हो गया था”