यूनिवर्सल टाइम (UT1) और कॉर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम (UTC)
हाल में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, पृथ्वी ग्रह पहले की तुलना में कुछ धीमी गति से घूर्णन कर रहा है, और इसलिए, हमें कुछ वर्षों में यूनिवर्सल टाइम में एक सेकंड घटाना पड़ सकता है।
पृथ्वी के दोनों ध्रुवों पर बर्फ पिघलने से पृथ्वी की घूर्णन गति प्रभावित हो रही है। हज़ारों वर्षों से, पृथ्वी आम तौर पर धीमी होती जा रही है, जिसकी दर समय-समय पर बदलती रहती है।
पृथ्वी की गति इसलिए तेज़ हो रही होती है क्योंकि इसका गर्म तरल कोर अप्रत्याशित तरीकों से काम करता है, जिसमें एडी और प्रवाह अलग-अलग होते हैं। कोर लगभग 50 वर्षों से गति बढ़ा रहा है, लेकिन 1990 के बाद से ध्रुवों पर बर्फ के तेजी से पिघलने ने उस प्रभाव को कम कर दिया है। पिघलती बर्फ पृथ्वी के द्रव्यमान को ध्रुवों से उभरे हुए केंद्र की ओर स्थानांतरित कर देती है, जिससे घूर्णन बहुत धीमा हो जाता है जैसे एक घूमते हुए आइस स्केटर अपनी भुजाओं को अपनी तरफ फैलाते समय धीमा हो जाता है।
बता दें कि पृथ्वी पर टाइमकीपिंग एटॉमिक क्लॉक द्वारा निर्धारित की जाती है, लेकिन यह मुख्य रूप से ऐतिहासिक कारणों से पृथ्वी के घूर्णन के साथ भी संरेखित होती है। चूँकि पृथ्वी के घूर्णन की दर में उतार-चढ़ाव होता है, इसलिए आधिकारिक समय मानक में कभी-कभी ‘लीप सेकंड’ जोड़कर इसे समायोजितजाता है। इसे समन्वित सार्वभौमिक समय (coordinated universal time: UTC) कहा जाता है।
नया अंतर्राष्ट्रीय रिफरेन्स टाइम, जिसे समन्वित सार्वभौमिक समय (UTC) के रूप में जाना जाता है, परमाणु घड़ियों द्वारा निर्धारित किया जाता है, लेकिन इसे पृथ्वी के घूर्णन कोण के साथ समायोजित किया जाता है, जिसे सार्वभौमिक समय (UT1) के रूप में जाना जाता है। 1972 से, UTC को 27 लीप सेकंड जोड़कर इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए समायोजित किया गया है।
नेचर जर्नल में हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, ध्रुवीय बर्फ के पिघलने से पृथ्वी के घूर्णन पर धीमा प्रभाव पड़ता है, जिससे नकारात्मक लीप सेकंड की आवश्यकता पर निर्णय लेने में प्रभावी रूप से देरी हो रही है। बता दें कि 1972 तक, ग्रीनविच मीन टाइम (जिसे ज़ुलु समय भी कहा जाता है) यूनिवर्सल टाइम (यूटी) के समान था। लेकिन अब यह एक टाइम जोन है।