अमेरिकी डॉलर सूचकांक (US dollar index)
अमेरिकी डॉलर सूचकांक (US dollar index) का उपयोग अमेरिका के महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदारों की छह प्रमुख मुद्राओं की एक बास्केट के मुकाबले अमेरिकी डॉलर के मूल्य को मापने के लिए किया जाता है।
ये मुद्राएँ यूरो, स्विस फ़्रैंक, जापानी येन, कैनेडियन डॉलर, ब्रिटिश पाउंड और स्वीडिश क्रोना हैं।
भारतीय रुपया (INR) डॉलर इंडेक्स में मुद्राओं की बास्केट में शामिल नहीं है। हालांकि, इंडेक्स में किसी भी बदलाव का असर रुपये पर भी पड़ता है।
डॉलर इंडेक्स का 100 से नीचे गिरना भारत जैसे उभरते बाजारों के लिए अच्छा संकेत हो सकता है। डॉलर सूचकांक, जो जून 2023 की शुरुआत में 104 के स्तर पर था, जुलाई 2023 में 100 से नीचे आ गया और 15 महीने के निचले स्तर को छू गया। विशेषज्ञों के मुताबिक, डॉलर इंडेक्स में तेजी से गिरावट और अमेरिका में 10 साल की यील्ड में गिरावट से उभरते बाजारों में लिक्विडिटी को समर्थन मिल रहा है।
चीन में निराशाजनक आर्थिक वृद्धि और अमेरिकी बाजार के परिदृश्य में सुधार से भारतीय बाजारों की ओर ध्यान आकर्षित हो रहा है।
डॉलर में गिरावट एक शक्तिशाली ट्रिगर है जो विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) प्रवाह को बनाए रख सकता है।
अमेरिकी डॉलर की दिशा ऐतिहासिक रूप से उभरते बाजार परिसंपत्तियों के प्रदर्शन से निकटता से जुड़ी हुई है। लंबे समय तक डॉलर की मजबूती की अवधि के दौरान, उभरते बाजार के शेयर आम तौर पर कमजोर प्रदर्शन करते हैं।
उभरते बाजार विदेशी निवेश और विदेशी पूंजी पर निर्भर हैं, जब डॉलर का मूल्य बढ़ता है तो ये दोनों कमजोर हो सकते हैं।
भारत कच्चे तेल का एक प्रमुख आयातक है। अगर डॉलर इंडेक्स बढ़ता है तो कच्चा तेल महंगा हो जाता है। इससे तेल आयातकों और आईओसी, एचपीसीएल और बीपीसीएल जैसी भारतीय रिफाइनरियों का लाभ कम हो जाता है।