बेस इफ़ेक्ट और क्राउडिंग आउट प्रभाव

कराधान उछाल (buoyancy of a tax system)

एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्यक्ष कर संग्रह 30 अगस्त के अंत तक अब तक “अच्छी उछाल” (good buoyancy) दिखा रहा है, जिसमें शुद्ध संग्रह 4.8 लाख करोड़ रुपये है, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट लक्ष्य का एक तिहाई हासिल कर चुका है।

यदि यही ट्रेंड जारी रहती है, तो वित्त वर्ष 23 के लिए प्रत्यक्ष कर संग्रह बजट लक्ष्य 14.20 ट्रिलियन रुपये से अधिक हो सकता है।

कराधान उछाल (buoyancy of a tax system) राष्ट्रीय आय में परिवर्तन और समय के साथ कर नीतियों में विवेकाधीन परिवर्तन से कर राजस्व पर कुल प्रभाव को मापती है। इसकी व्याख्या आय में एक प्रतिशत परिवर्तन से राजस्व संग्रह में प्रतिशत परिवर्तन के रूप में की जाती है।

क्राउडिंग आउट प्रभाव

ऐसी स्थिति जब ब्याज दरों में वृद्धि से निजी निवेश खर्च में कमी आती है, जैसे कि यह कुल निवेश खर्च की प्रारंभिक वृद्धि को कम कर देता है, तो इसे क्राउडिंग आउट प्रभाव (crowding out effect) कहा जाता है।

कभी-कभी, सरकार एक विस्तारवादी राजकोषीय नीति रुख अपनाती है और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अपने खर्च को बढ़ाती है। इससे ब्याज दरों में वृद्धि होती है। बढ़ी हुई ब्याज दरें निजी निवेश निर्णयों को प्रभावित करती हैं।

क्राउडिंग आउट प्रभाव की उच्च मात्रा से अर्थव्यवस्था में निम्न आय की स्थिति भी पैदा हो सकती है। उच्च ब्याज दरों के साथ, निवेश की जाने वाली निधियों की लागत बढ़ जाती है और ऋण वित्तपोषण तंत्र तक उनकी पहुंच प्रभावित होती है। यह अंततः कम निवेश की ओर ले जाता है और कुल निवेश खर्च में शुरुआती वृद्धि के प्रभाव को कम करता है।

आमतौर पर सरकारी खर्च में शुरुआती वृद्धि को उच्च करों या सरकार की ओर से उधार का उपयोग करके वित्त पोषित किया जाता है।

बेस इफ़ेक्ट

31 अगस्त को जारी आधिकारिक जीडीपी डेटा के अनुसार भारत की कृषि वृद्धि 2022-23 की अप्रैल-जून तिमाही में वार्षिक आधार पर 4.5% दर्ज की, जो मजबूत विस्तार को दर्शाता है। कृषि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर सर्दियों में बोई गई अच्छी फसल और उच्च खाद्य कीमतों की वजह से है। लेकिन यह एक अनुकूल बेस इफ़ेक्ट (favourable base) से भी प्रेरित था, जिसका अर्थ है कि 4.5% की वृद्धि आंशिक रूप से पिछले वर्ष (2021-22) की इसी तिमाही में दर्ज की गई खराब वृद्धि के कारण थी।

जीडीपी अर्थव्यवस्था में उत्पन्न आय का सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला उपाय है। बेस इफ़ेक्ट (base effect) दरअसल एक सांख्यिकीय परिणाम है जो जीडीपी या मुद्रास्फीति जैसे किसी भी आर्थिक मूल्य को विगत वर्ष के समान अवधि के प्रदर्शन के आधार पर कम या उच्च दिखाता है।

जैसे यदि पिछले वित्त वर्ष के प्रथम तिमाही में वृद्धि दर नकारात्मक रही हो तो इस वर्ष के समान तिमाही में अधिक वृद्धि दर दिखाई देगी। इसका मतलब यह नहीं है कि इस वर्ष अधिक विकास दर हासिल हुई बल्कि पिछले साल की नेगेटिव वृद्धि की वजह से इस वर्ष वृद्धि दर उच्च दिखाई देती है।

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