बायो-माइनिंग (Bio-Mining) क्या है?
विरासती कचरे (legacy waste) का शत-प्रतिशत बायो-माइनिंग (bio-mining) दिल्ली में डंपिंग स्थलों पर बार-बार आग लगने की समस्या का समाधान है। हालांकि, गाजीपुर डंपसाइट पर पुराने कचरे की जैव-खनन/बायो-माइनिंग बहुत धीमी रही है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष 31 जुलाई, 2022 को दायर गाजीपुर लैंडफिल में आग पर अंतरिम प्रगति रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई 2019 से कुल विरासत कचरे का केवल सात प्रतिशत ही संसाधित किया गया है।
बायोमाइनिंग (bio-mining) एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा कचरा/अपशिष्ट जैव-जीवों या प्राकृतिक तत्वों जैसे हवा और सूरज की रोशनी के साथ ट्रीट किया जाता है ताकि कचरे में बायोडिग्रेडेबल तत्व समय के साथ टूट जाएं।
मूल रूप से बायोमाइनिंग, रॉक अयस्कों या खदान के कचरे से आर्थिक मूल्य की धातुओं को निकालने के लिए सूक्ष्मजीवों (microbes) का उपयोग करने की प्रक्रिया है।
धातुओं से प्रदूषित स्थलों को साफ करने के लिए बायोमाइनिंग तकनीकों का भी उपयोग किया जा सकता है।
मूल्यवान धातुएँ आमतौर पर ठोस खनिजों में बंधी होती हैं। कुछ माइक्रोब्स उन धातुओं का ऑक्सीकरण कर सकते हैं, जिससे वे पानी में घुल सकते हैं।
अधिकांश बायोमाइनिंग के पीछे यह मूल प्रक्रिया है, जिसका उपयोग उन धातुओं के लिए किया जाता है जिसे ठोस चट्टानों की तुलना में घुलने पर अधिक आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
जहाँ तक अपशिष्ट प्रबंधन का सवाल है तो जैव-खनन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्लास्टिक, धातु, कांच, ज्वलनशील पदार्थ, अन्य महीन सामग्री और मिट्टी को फिर से प्राप्त करने के लिए लैंडफिल साइटों से पहले डंप की गई या नष्ट की गई सामग्री को खोदना शामिल है। इस प्रकार बरामद प्लास्टिक, धातु और अन्य सामग्री को पुनर्चक्रण के लिए भेजा जाएगा। लैंडफिल साइट में बायोडिग्रेडेबल कचरा विघटित हो जाता है। जब एक ही साइट में गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्री फिर से प्राप्त की जाती है और रीसाइक्लिंग के लिए भेजी जाती है, तो भूमि को भविष्य में उपयोग के लिए पुनः प्राप्त किया जा सकता है।