कोंडा रेड्डी आदिवासी
कोंडा रेड्डी आदिवासी परिवार (Konda Reddi tribal families) अपने घरों की छतों पर बैंबू शूट्स की माला लटकाते हैं और उन्हें एक सप्ताह तक सुखाते हैं। एक हफ्ते बाद, या जब भी अंकुर पूरी तरह से सूख जाते हैं, तो परिवार अगले मानसून तक उपभोग के लिए उन्हें स्टोर कर लेते हैं।
कोंडा रेड्डी जनजाति का मानना है कि बांस के अंकुर अत्यधिक पौष्टिक होते हैं। सूखे बांस के अंकुर मानसून के दौरान उनके आहार का एक हिस्सा होते हैं क्योंकि यह “वायरल बुखार के खिलाफ उनकी प्रतिरक्षा में सुधार करता है।”
वन और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय लोगों को हर प्रकार के बांस के पेड़ को संग्रह करने का अधिकार गया है, जिसे लघु वनोपज के रूप में वर्गीकृत किया गया है। उन्हें अपनी आजीविका के लिए इसके वाणिज्यिक मूल्य का दोहन करने का अधिकार भी है।
बांस के बारे में
बांस (Bamboo) वास्तव में पोएसिया (Poaceaea) घास परिवार से संबंधित है। यह एक फूल वाली बारहमासी सदाबहार घास है।
बांस दुनिया की सबसे बड़ी घास है, और एकमात्र घास है जो जंगल में विविधता ला सकती है। बाँस के फूल होते हैं, लेकिन इसके फूल विरले ही देखे जाते हैं जिनमें कुछ प्रजातियाँ 65 या 120 वर्षों के बाद ही फूल विकसित करती हैं।
बांस के पौधे चरम स्थितियों में जीवित रह सकते हैं जहां अधिकांश पौधे जीवित नहीं रह सकते हैं, जैसे कि एंडीज और हिमालय में -20 डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापमान में।
बांस कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करती हैं और पेड़ों की तुलना में 35% अधिक ऑक्सीजन उत्पन्न कर सकती हैं।
भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत बांस को घास होने के बावजूद पेड़ के रूप में माना जाता था। लेकिन 2017 में संशोधन के द्वारा इसे पेड़ की श्रेणी से हटा दिया गया, जिससे आर्थिक उपयोग के लिए बांस की कटाई के लिए परमिट प्राप्त करने की आवश्यकता समाप्त हो गई।
वर्ष 2017 में संशोधन से पहले, वन के साथ-साथ गैर-वन भूमि पर उगाए गए बांस की कटाई और ट्रांजिट करने के लिए भारतीय वन अधिनियम के तहत परमिट लेने की जरुरत पड़ती थी।
1927 के वन अधिनियम, (IFA, 1927) में 2017 में संशोधन ने गैर-वन क्षेत्रों में उगाए गए बांस को पेड़ की परिभाषा से छूट दी, जिससे इसके आर्थिक उपयोग के लिए फ़ेलिंग/ट्रांजिट परमिट की आवश्यकता समाप्त हो गई।